Sunday 8 September 2019

Antararashtreeya saksharta diwas : अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस

खरी खरी - 486 : अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस

        8 सितंबर 2019 को 53वें अन्तर्राष्ट्ररीय साक्षरता दिवस पर कोई विशेष समारोह का समाचार मीडिया में नहीं लपलपाया । मीडिया में हाईप खबरें ही गूंजती रही । दो वर्ष पहले इसी दिवस पर उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू जी ने नई दिल्ली में कहा था , "हर नागरिक एक अनपढ़ को साक्षर बनाये ताकि गरीबी और भ्र्ष्टाचार दूर किया जा सके ।" वेंकैया जी एक नेक दिल, शिष्ट और स्पष्टवादी इंसान हैं । दिवंगत संजय गांधी ने भी देश को 4 नारे दिये थे - 'देश का एक व्यक्ति एक अनपढ़ को पढ़ाये, प्रत्येक व्यक्ति एक पेड़ लगाए, अपना शहर स्वच्छ रखें और परिवार छोटा रखें ।' यह बात सत्तर के दशक के उत्तरार्ध्द की है । पूर्व राष्ट्रपति कलाम सर ने  83वें संविधान संशोधन ( वर्ष 2000 ) को अपनी सहमति दी और शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया ।

     1947 में साक्षरता 18 % थी और आज 75% है अर्थात आज भी देश में 25% लोग अनपढ़ हैं । आजादी के 72 साल बाद भी हमारा देश पूर्ण साक्षर नहीं बन पाया, यह बहुत दुख की बात है । वेकैंया जी ने उस अवसर पर कहा 'राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी निरक्षरता को समाज के लिए शर्मनाक और कलंक बताया था ।'

      हमारे सभी राष्ट्रीय लक्ष्य समय पर कभी भी पूरे नहीं होते । देश के अधिकांश स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी है । स्कूली शिक्षा का स्तर भी संतोषजनक नहीं है । एक राज्य के शिक्षकों के ज्ञान की चर्चा कुछ दिन पहले मीडिया में दिखाई गई जो अत्यंत ही सोचनीय थी । स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर, शौचालय, पानी और बिजली आज भी कुछ जगह अपूर्ण है । स्कूलों में कहीं विद्यार्थी नहीं तो कहीं अध्यापक नहीं है  । कुछ स्कूलों में आधा साल बीत जाने के बाद भी बच्चों को पुस्तकें नहीं मिलती हैं । मिड डे मील भी कुछ जगहों पर अव्यवस्थित है ।

      ऐसे में हमारा कछुवा तंत्र 2022 तक पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य कैसे प्राप्त कर सकेगा ? हमारा विकसित राष्ट्र का सपना और विश्वगुरु बनने का सपना कैसे पूरा होगा जब आज भी विश्व के प्रथम 200 विश्वविद्यालयों  में हमारा नाम नहीं है । इसका मुख्य कारण देश प्रत्येक क्षेत्र में अंधविश्वास के भंवर से बाहर आकर वैज्ञानिक सोच को तरजीह नहीं दे पा रहा और अधिकांश समय हिन्दू -मुस्लिम या आरक्षण या पुरातन परम्पराओं के झमेले की  वार्ता -बहस में ही गुजर जाता है । हमें नई सोच के साथ नई पहल करनी होगी ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.09.2019

No comments:

Post a Comment