खरी खरी-497 : ब्रह्मचर्य को समझने की जरूरत
( आज की यह खरी- खरी "ब्रह्मचर्य" को समझने का एक प्रयास है जिसके लिए मशहूर कामविज्ञानी डॉ कोठारी के संपादित शब्द साभार यहां उधृत हैं । विज्ञान का छात्र होने के नाते मैं डॉ कोठारी से सहमत हूँ ।)
"ब्रह्मचर्य का मतलब जो आम आदमी निकालता है, वह यह कि सेक्स (रतिक्रिया) नहीं करना, सेक्शुअल गतिविधि से दूर रहना और वीर्य (पुरुष जननांग से निकलने वाला स्राव या शुक्र या सीमन) न निकलने देना। लोग ऐसा मानते हैं कि एक बूंद वीर्य 100 बूंद खून के बराबर है, इसलिए इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। सच्चाई यह है कि ऐसा न तो आयुर्वेद में लिखा है, न ही कामसूत्र में। वीर्य और खून का कोई रिश्ता ही नहीं है। वीर्य 24 घंटे बनता है। इसे व्यक्ति नहीं भी निकाले तो यह अपने आप निकल जाएगा। अगर आप भरे हुए ग्लास में पानी डालते जाएंगे तो क्या होगा? ओवरफ्लो हो जाएगा। सहवास से दूर रहने पर यह स्वप्नदोष के जरिए निकल जाएगा।"
"वीर्य के निकलने से किसी तरह की कमजोरी नहीं आती। कामसूत्र में भी वीर्य को पकड़ में रखने का कोई फायदा नहीं बताया गया है बल्कि चरक ने नामर्दगी के 4 कारणों में से एक कारण इंद्रियों का उपयोग नहीं करने को बताया है। मतलब, अनुपयोग से शिथिलता आ सकती है, उपयोग से नहीं।
ब्रह्मचर्य का मतलब है आत्मा का शोध। ब्रह्मचर्य का मतलब है वेद का अभ्यास। यही 2 अर्थ सही हैं। तीसरा अर्थ लोगों ने नासमझी में या अपने फायदे (लोगों की अज्ञानता से अपनी दुकान चलाना) के लिए बना लिया है ।"
कई हैल्थ एजुकेसन ब्यूरो में MCH (मैटरनिटी ऐंड चाइल्ड हेल्थ) प्रशिक्षण के दौरान भी डा. कोठारी की तरह ही कई विशेषज्ञों ने इस तथ्य को ठीक इसी तरह हमें समझाया । भ्रांति या मिथ को दूर करना ही आज की इस खरी -खरी का उद्देश्य है ताकि लोग नीम - हकीमों के चंगुल से दूर रहें । सोसल मीडिया में एक मित्र ने शबरीमाला मंदिर के देवता अय्यप्पन के ब्रह्मचर्य के कारण वहां महिला प्रवेश वर्जित बताया था जिसके द्वार अब न्यायालय ने सभी महिलाओं के लिए खोल दिये हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.09.2019
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