Wednesday 18 September 2019

Hindi ka dard : हिंदी का दर्द

बिरखांत - 282 :  हिन्दी का दर्द, 14 सितंबर के बाद भी

    देश में हिन्दी सहित 24 भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं | ये सभी राष्ट्र भाषाएं हैं | देश को आजाद हुए 72 वर्ष हो गए परन्तु हिन्दी पूर्ण रूप से हमारे संघ की राजभाषा नहीं बन पाई | हिंदी एक जनभाषा, मातृभाषा और सबसे बढ़कर एक मेलजोल की भाषा के रूप में देश में विद्यमान है जिसके बोलने-समझने-लिखने-पढ़ने वाले लगभग अस्सी करोड़ से अधिक हैं | जिस देश में 95 % लोग अंगरेजी नहीं जानते वहाँ अंग्रेजी अपना शासन आज भी जमाये हुए है |

       जिन घरों में हिन्दी बोली भी जाती है वहाँ बच्चे एक से सौ तक की गिनती हिन्दी में नहीं जानते | देश में हिन्दी से अधिक अंग्रेजी साहित्य का पठन-पाठन हो रहा है | कर्यालयों में मैकाले का ही ‘फार्मेट’ चल रहा है जिसे कोई उखाड़ने को तैयार ही नहीं है | साल में एक बार 14 सितम्बर को ही हिन्दी में चिंदी- बिंदी लगाई जाती है | अधिकांश जगह देश में यही हो रहा है | कहने को हमारे नेता संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में व्याख्यान देते हैं परन्तु देश की संसद में फर्राटेदार अंग्रेजी झाड़ते हैं जबकि अधिकांश सांसद हिन्दी समझते हैं |

      हमारी सोच भी बहुत लज्जाजनक हो गई है क्योंकि हम हिन्दी को पिछड़ों की भाषा समझने लगे हैं | हिन्दी में हस्ताक्षर करने में हम कतराते हैं | देश –विदेश की अन्य भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है परन्तु अपने  देश की एक सर्वमान्य भाषा अभी तक नहीं बन सकी जबकि इसे लागू करने के लिए स्वतंत्रता के बाद मात्र 15 वर्ष की समय सीमा निश्चित थी | हमारे संविधान के भाग 17 अनुच्छेद 343 (1) में स्पष्ट लिखा है कि संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी फिर भी हिन्दी लाचार है और अंग्रेजी राज कर रही है |

      मेरी मातृभाषा कुमाउनी है जिसे में बोलता-लिखता -पढ़ता हूं और कुमाउनी भाषा में 12 किताबों की रचना कर चुका हूं परन्तु मैं हिन्दी तथा अंग्रेजी के अलावा देश की कुछ अन्य भाषाएं भी थोड़ा-बहुत जानता हूं | मेरा हिन्दी प्रेम मेरी 17 हिन्दी पुस्तकों की ज़ुबानी प्रकट भी हुआ है | दो पुस्तकें एकसाथ तीन भाषाओं में हैं । अन्य भाषाओं का ज्ञान होना ठीक है पर हिन्दी की कीमत पर नहीं | देश में त्रिभाषा सूत्र कायम रहना चाहिए जिसके अंतर्गत तीन भाषाओं – मातृभाषा (स्थानीय भाषा), हिन्दी (राजभाषा) और लिंक भाषा के रूप में अंग्रेजी (अंतरराष्ट्रीय भाषा ) जारी रहे परन्तु हिन्दी में शिथिलता किसी भी हालत में मान्य नहीं होनी चाहिए | एशिया के देश चीन, जापान और  कोरिया अपनी भाषा में रमते हुए विकास के शिखर पर पहुंच गए  हैं | 14 सितम्बर 'हिन्दी दिवस' के बाद भी हिन्दी के कपाल पर बिन्दी लगती रहे तभी हिन्दी आगे बढ़ेगी ।

हिन्दी अपनी राष्ट्र की भाषा
पढ़ लिख नेह लगाय,
सीखो चाहे और कोई भी
हिन्दी नहीं भुलाय,
हिन्दी नहीं भुलाय
मोह विदेशी त्यागो,
जन जन की ये भाषा
हे राष्ट्र प्रेमी जागो,
कह ‘पूरन’ कार्यालय में
बनी यह चिंदी,
बीते सत्तर बरस
अभी अपनाई न हिन्दी |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.09.2019

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