Thursday 19 September 2019

Ise ijjat lut gaee n कहें : इसे इज्जत लूट गई न कहें

खरी खरी - 492 : इसे 'इज्जत लुट गई..' न कहें

        बहुत ही शर्मनाक और दुखद स्थिति में हम देख रहे हैं कि समाज में बलात्कार की घटनाएं थमने के बजाय बढ़ रही हैं । 2012 के दिल्ली निर्भया बलात्कार काण्ड के मृत्यु दण्ड पाए नरपिशाच अभी जीवित हैं यह दुखद है । अब तो कई हाई प्रोफाइल और रसूखदार भी ब्लैकमेल कर बलात्कार करने लगे हैं । बलात्कार की शिकार स्त्री- जात का असहनीय शारीरिक और मानसिक पीड़ा से मुक्त होना बहुत कठिन है | इससे भी बढ़कर है सामाजिक दंश की पीड़ा | हमारे समाज में स्त्री के साथ इस तरह की घटना होने पर ‘इज्जत लुट गई’ कह दिया जाता है जो सर्वथा अनुचित और शर्मनाक है | इस सामाजिक दंश की पीड़ा इतनी भयानक और अकल्पनीय है की कुछ पीड़ितायें तो आत्म-हत्या तक कर लेती हैं | यह ठीक नहीं है और समाज के लिए शर्म की बात है | पीड़ित का तो इसमें कोई दोष ही नहीं है फिर वह स्वयं को क्यों सजा दे ? यदि उस समय वह उस दंश के सदमे से उबर जाए तो आत्म- हत्या से बच सकती है | उस समय उसे सामाजिक, चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक उपचार के अत्यधिक जरूरत होती है |

     दुष्कर्म पीड़िता को यह सोचकर हिम्मत बांधनी होगी कि वह स्वयं को क्यों सजा दे ? उसने तो कोई अपराध नहीं किया और न उसका कोई कसूर | सिर्फ स्त्री -जात होने के कारण उसका शिकार हुआ है | उसे स्वयं को समझाना होगा कि वह एक नरपिशाच रूपी भेड़िये का शिकार हो गयी थी | उसे अपनी  पीड़ा को सहते हुए, टूटे मनोबल को पुनः जागृत कर जीना होगा और नरपिशाचों को सजा दिलाने में क़ानून की मदद करनी होगी जो बिना उसके सहयोग के संभव नहीं हो सकेगा | यों भी जंगली जानवरों द्वारा काटे जाने पर हम उपचार ही तो करते हैं | हादसा समझकर इसे भूलने के साथ- साथ इन भेड़ियों के आक्रमण से बचाव का हुनर भी अब प्रत्येक महिला को  सीखना होगा और हर कदम पर अपनी चौकसी स्वयं करनी होगी |

       जघन्य अपराधी बलात्कारियों को शीघ्र कठोरतम दंड मिले, यह पीड़ित के लिए दर्द कम करने की एक मरहम का काम करेगा | साथ ही अब समाज के बड़े- बुजर्गों, बुद्धिजीवियों, धर्म गुरुओं, पत्रकर- लेखकों, सामाजिक चिंतकों और महिला संगठनों को जोर-शोर से कहना पड़ेगा के इसे ‘इज्जत लुटने’ या ‘इज्जत तार तार होने’ वाली जैसी बात नहीं समझें और ‘उक्त शब्दों’ से मीडिया और टी वी चैनलों को भी परहेज करना होगा ताकि दर्द में डूबी निर्दोष पीड़िता को जीने की राह मिल सके |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.09.2019

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