मीठी मीठी - 355 : मन के मनके
20 सितम्बर 2019 को गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान डॉ पुष्पा जोशी जी ने मुझे अपनी लिखी हुई पुस्तक " मन के मनके " (काव्य संग्रह ) भेंट की । अमृत प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित 110 पृष्ठों के इस काव्य - संग्रह में 53 कविताएं और 56 चतुष्पद हैं । मां को समर्पित इस काव्य - संग्रह की सभी कविताएं उत्कृष्ट हैं और दिल को छूती हैं । तीन कविताएं तो ' नारी ' शीर्षक से हैं - ' नारी ही सबसे न्यारी है ', नारी आज भी अकेली है..' और नारी : एक सम्पूर्ण संसार '। ' नारी ही सबसे न्यारी है ' कविता का अंतिम छंद बहुत ही संदेशात्मक है जो यहां उद्धृत है -
"हे नारि ! उठो !
स्वयं को पहचानो, दु:शासन को जानो
केवल नारे नहीं, वारे -न्यारे करने होंगे
घर - घर से नारायण-आसाराम पकड़ने होंगे
तभी होगा उत्थान तुम्हारा...
करोगी जब बुलंद ये नारा...
नारी ही सबसे न्यारी है...
मान लो...
सब पर यह भारी है ...
मान लो सब पर यह भारी है ।"
सभी कविताओं की चर्चा करना मेरे असमर्थता है । ' देवभूमि ही नेर गहना, एक पत्थर तबीयत से उछालो, मुझे आज जीने दो, भारत के वीर सपूत...आदि कविताएं बहुत रोचक हैं ।
चतुष्पदी (56) भी एक से बढ़कर एक हैं । उदाहरणार्थ -
" कभी बर्फ, कभी अंगार है तू
कभी शोला, कभी बयार है तू
तेरा आना, आकर चले जाना
मानो बरखा की फुहार है तू ।"
" शंख होई मंदिर का, बजने दो मुझे
अज़ान मस्जिद की सुनने दि मुझे
चर्च की पवित्र बाइबिल है भीतर
गुरुद्वारे का लंगर छकने दो मुझे ।"
अंत में यही कहूंगा कि लेखिका ने एक अच्छा काव्य- संग्रह हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसमें रंग - बिरंगे इंद्रधनुषी तराने हैं । भाषा बहुत सहज है और शब्द रचना पाठक से एक सुमधुर संपर्क साध लेती है । हम उम्मीद करते हैं कि यह काव्य - संग्रह पाठकों को बहुत भाएगा । पुस्तक प्राप्ति के लिए मोब 7838043488 पर संपर्क किया जा सकता है । डा. पुष्पा जोशी को इस काव्य - संग्रह की रचना के लिए बधाई और शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
26.09.2019
No comments:
Post a Comment