Wednesday 11 September 2019

Aane do bitiya ko : दो बिटिया को

बिरखांत-281: आने दो बिटिया को

( कुछ महीने पहले उत्तरकाशी जिले के  133 गावों में में तीन महीने में 216 प्रसव हुए, सभी लड़के जन्मे । इस अद्भुत रहस्य पर अभी वार्ता होने की प्रतीक्षा है । )

     मानव को जन्म देने वाली जननी की जन्मने से पहले ही बेख़ौफ़ हत्या के लिए हमारा संकुचित परम्परावादी समाज ही जिम्मेदार है | कन्याओं की गर्भ में ही हत्या कर हम मानवता को अंत की ओर ले जा रहे हैं | महिला रहित समाज की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती फिर भी हम यह कुकृत्य  कर रहे हैं | तकनीक ने हमें शैतान बना दिया, जो हम बीमारी की जानकारी देने वाली मशीन से ह्त्या के लिए कन्या भ्रूण ढूँढने लगे | कुकुरमुत्तों की तरह अवैध गर्भपात केन्द्रों तथा कसाईखाना बन गये नर्सिंगहोमों ने प्रकृति प्रदत मानव लिंग-अनुपात की चूल हिला दी है | (1000/940 वर्ष 2011 ) | यदि इन कसाईखानों को नहीं रोका गया तो बेटों के चहेतों को अपने कुंआरे लाडलों के लिए दुल्हन ढूंढ कर भी नहीं मिलेगी | देश के कुछ राज्यों में यह समस्या दस्तक दे चुकी है |

     लड़कियाँ पैदा होने से पहले ही क्यों मार दी जाती हैं ? जन्मी हुई बेटियां हमें भार क्यों लगती हैं ? हम पुत्रियों की तुलना में पुत्रों को अधिक मान्यता क्यों देते हैं ? हमें बेटा ऐसा क्या दे देगा जो बेटी नहीं दे सकती ? बेटे को चावल और बेटी को भूसा समझने की सोच हमारे मन-मस्तिष्क में क्यों पनपी ? इस तरह के कई प्रश्नों का उत्तर हमें अपनी दूषित -संकुचित मानसिकता एवं कथनी- करनी में बदलाव लाकर स्वत: ही मिल जाएगा | ‘लड़की ससुराल चली जायेगी, लड़का तो हमारे साथ ही रहेगा और सेवा करने वाली दुल्हन के साथ खूब दहेज़ भी लाएगा, जबकि लड़की को पढ़ाने में, फिर उसके विवाह में खर्च होगा और मोटा दहेज़ भी देना पड़ेगा | इतना धन कहां से आएगा ? दहेज़ का ‘स्टैण्डर्ड’ भी बढ़ चुका है | इससे अच्छा है दो-चार हजार ‘सफाई’ के दे दो और लाखों बचाओ | फिर बेटा तो सेवा करेगा, वंश चलाएगा, मुखाग्नि और पिंडदान देगा तथा श्राद्ध भी करेगा | लड़की किस काम की ?’ इस तरह की मानसीकता ने ही आज यह सामाजिक समस्या खड़ी कर दी है | कसाई बने चिकित्सकों को दोष भलेही दें परन्तु वास्तविक दोषी तो माता-पिता या दादा-दादी हैं जो दबे पांव कसाइयों के पास जाते हैं |

       पुत्र लालसा ने जनसँख्या के सैलाब को विस्फोटक बना दिया है | बढ़ती जनसंख्या में विकास ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसे लगने लगा है | शिक्षा के प्रसार से लोग इस बात को समझ रहे हैं कि लड़का- लड़की जो भी हो संतान दो ही काफी हैं | आज भी हमारे देश में एक आस्ट्रेलिया की जनता के बराबर जनसख्या प्रतिवर्ष जुड़ती जा रही है | ग्रामीण भारत तथा शहर के पिछड़े तबके में जनसँख्या वृद्धि अधिक है | हमें एक दोष जनसंख्या नीति अपनानी ही होगी जिसमें दो संतान के बाद ग्राम सभा से लेकर संसद तक की सभी सुविधाएं वंचित होनी चाहिए | पड़ोसी देश चीन ने नीति बनाकर ही जनसँख्या पर नियंत्रण कर लिया है |

       जनसँख्या नियंत्रण के आज कई तरीके हैं परन्तु अवैध शल्य  चिकित्सा द्वारा भ्रूण हत्या में महिला को पीड़ा के साथ –साथ बच्चेदानी के अंदरूनी पर्त के क्षतिग्रस्त होने की संभावना भी रहती है | उस समय गर्भ से छुटकारा पाने की जल्दी में ऐसी महिलाओं को वांच्छित पुनः गर्भधारण करने में रुकावट हो सकती है | क़ानून के अनुसार लिंग बताना तथा भ्रूण हत्या करना अपराध है | कुछ ‘कसाइयों’ को इसके लिए दण्डित भी किया जा चुका है | दुख की बात तो यह है की अशिक्षित एवं गरीबों के अलावा संपन्न लोग भी लड़के के लिए भटक रहे हैं | काश ! इन लोगों को पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आकाश की ऊँचाइयों को छूने वाली अनगिनत महिलायें नजर आती तो शायद ये अपनी बेटियों के साथ कभी अन्याय नहीं करते और दो बेटियों  के आने के बाद किसी लाडले की प्रतीक्षा में परिवार नहीं बढ़ाते | रियो से 2016 में ओलम्पिक दो पदक लाने वाली सिंधु- साक्षी सबके सामने हैं | 18वें एशियाड में भी लड़कियों ने कई पदक जीते ।

    कविता संग्रह ‘स्मृति लहर’ में ‘नारी का ऋण’ कविता में मैंने एक दम्पति के शब्दों को कविता रूप दिया है, “बेटा, बेटा रह सकता है पुत्रवधू के आने तक; बेटी, बेटी ही रहती है अंतिम साँस के जाने तक |” अत: ‘बिटिया को आने दो, मारो मत |’ हमें कन्याभ्रूण हत्या से नहीं बल्कि कन्यादान से अपार सुकून, अनंत सुख और अविरल शांति आजीवन मिलती रहेगी | अटल जी की चिता को उनकी नातिन और सुषमा जी की चिता को उनकी बेटी ने ही अग्नि दी । सोच बदलने की बात है । जब जागो तब सवेरा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.09.2019

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