Tuesday 25 September 2018

Manthan se soch badale : मंथन से सोच बदले

खरी खरी - 312 : मंथन से सोच बदलती है।

     वर्ष 1975 -76 के दौरान मैं पूर्वोत्तर के एक सीमावर्ती राज्य में सेवारत था । तब वहां  के गावों की सेनिटेसन (स्वच्छता) हालात ठीक नहीं थे । लोग अपने घर के पास ही खुले में शौच करते थे । उस शौच से उनके सूवर पलते थे लेकिन गन्दगी बहुत थी । स्वच्छता अभियान के दौरान एक दुभाषिये के साथ मुझे वहां भेजा गया । मैंने उन लोगों को खुले में शौच से  होने वाले सभी दुष्प्रभावों के बारे में समझाया और सेनिटरी इंजीनियरिंग के तरीके से स्थानीय हालात को देखकर शैलो तथा डीप ट्रेंच लैट्रिन बनाने का डिमोंस्ट्रेसन दिया ।

     गांव वाले यह सब देख-सुन कर मुझ से नाराज हो गए । उनका कहना था, "ये आदमी हमारे सूवरों को मारना चाहता है ।" दुभाषिये ने मुझे सारी कहानी समझाई । इसके बाद मैंने उन्हें मक्खियों से होने वाले, जल -जनित रोग तथा कृमिरोग के बारे में समझाया । वहां कई लोग इन रोगों से ग्रसित भी थे । गांव के मुखिया, दुभाषिये के सहयोग और मेरे प्रयास से उन लोगों ने खूब मंथन किया और खुले में शौच करना बंद कर दिया ।

      एक महीने के बाद स्वास्थ्य निदेशक के आदेश से मुझे उस क्षेत्र के मूल्यांकन के लिए पुनः भेजा गया । गांव की दशा बदल चुकी थी । गांव से मक्खियों की भनभनाहट दूर हो चुकी थी और मेरे प्रति उनकी नाराजी भी दूर हो चुकी थी । इस चर्चा से मैं कहना चाहता हूं कि यदि लोग मंथन करें तो वे अवांच्छित प्रथा- परम्परा और अंधविश्वास के सांकलों को तोड़ सकते हैं ।

     यह भी बताना चाहूंगा कि पी एम साहब का कथन, "जो मुंह से तो वंदेमातरम कहते हैं और धरती में जहां-तहां कूड़ा डालते हैं, यह वंदेमातरम नहीं है" बिलकुल सत्य और सटीक है । हम सब देश के स्वच्छता अभियान को जहां -तहां कूड़ा डाल कर पलीता लगा रहे हैं । स्मरण रहे कि स्वच्छता अभियान कोई नया नहीं है । अब तक के सभी 14 प्रधानमंत्रियों और 14 राष्ट्रपतियों ने इसकी चर्चा की है और इसे गति दी है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.09.2018

No comments:

Post a Comment