Sunday 23 September 2018

Kis devata ko poojein : किस देवता को पूजें

खरी खरी -309 : हम कितने देवता पूजें ?

     देवता तो 33 कोटि के हों या 33 करोड़ । इस पर बहस क्यों हो ? इस बहस से लाभ भी कुछ नहीं । यह अनंत बहस है । यह बहस कभी समाप्त नहीं होगी । हम एक ईश्वर की बात करें । जिसको जो देवता पूजना हो पूजे । ईश्वर/भगवान केवल एक है और वह निराकार है । उसमें विश्वास रखने से हमें ताकत मिलती है, शांति मिलती है और अंहकार दूर रहता है तथा दुःख को सहने की शक्ति मिलती है । यह श्रध्दा का सवाल है । यही आदि औऱ यही अंत । हमने न कभी ईश्वर को देखा है और न हम कभी उससे मिले हैं फिर भी दुख-सुख की घड़ी में उसे अपने स्वार्थ के लिए याद करते आ रहे हैं । इस पर इससे ज्यादा कितनी भी वार्ता करलें अंत में निष्कर्ष यही निकलेगा ।

        हम वर्तमान में जी रहे हैं और पौराणिक युग की चर्चाओं को ही अत्यधिक समय दे रहे हैं । यह बहस क्यों नहीं होती कि देश के बच्चे कुपोषित क्यों हैं ? यह बहस क्यों नहीं हो कि देश अंधविश्वास के घेरे से बाहर कैसे आये ?  यह वार्ता क्यों नहीं होती कि नदियों में विसर्जन सहित सभी प्रकार की गंदगी नहीं गिरे । इस वैज्ञानिक युग में उस धरती की बात नहीं हो रही जो हमारे शोषण से त्रस्त है और जिससे जलवायु का अचानक परिवर्तन हो रहा है । अतः समाज को स्वयं चेतना/सोचना होगा कि हम अपने को किस बहस में उलझाएं ?

      यदि हम सार्थक और जनउपयोगी बहस करेंगे तो सबसे पहले हमारा कोई एक विश्वविद्यालय विश्व के सर्वश्रेष्ठ 250 विश्वविद्यालयों में शामिल होगा (जो अब तक नहीं है ) फिर शायद कोई हमें सपेरों का देश न कह कर विकसित भारत कहने लगे ।  इसके लिए हमें सर्वप्रथम धर्म - सम्प्रदाय के देश में पनपते कलुषित रागों से छुटकारा पाना होगा क्योंकि इससे देश का सौहार्द बिगड़ता है । विश्व गुरु हम अवश्य बनेंगे परन्तु पहले अपने घर को ठीक करना नितांत आवश्यक ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.09.2018

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