खरी खरी - 935 : विधवाओं की दयनीय दशा
हमारे देश में विधवाओं की स्थिति बहुत दयनीय है । धर्म के ठेकेदार उन्हें अशुभ मानते हैं और शुभ अवसरों पर पीछे धकाते हैं । उन्हें कुछ सामाजिक/धार्मिक आयोजनों में भाग लेने से रोका जाता है। अमुक महिला ही अमुक यात्रा में शामिल होंगी कहा जाता है। उनके लिए श्वेत वस्त्र पहनने की अनिवार्यता होती है जबकि समाज में विधुर के लिए कोई पाबंदी नहीं है। शादी की उम्र होने के बावजूद भी उनका पुनर्विवाह नहीं होने दिया जाता और एक परित्यक्त जीवन बिताने पर उन्हें मजबूर किया जाता है । हर साल 23 जून को विधवा दिवस मनाया जाता है ताकि विश्व का ध्यान विधवाओं की समस्याओं की ओर आकृष्ट किया जाय।
वृंदावन सहित कई शहरों में विधवाओं की दयनीय दशा देखकर सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों को इस मुद्दे पर गंभीरता से मंथन करने को कहा है । हमारी रुढ़िवादी सोच ने ही विधवाओं को काशी या वृंदावन पहुँचाया है । वैधव्य की मार झेलती इन परित्यक्ताओं को समाज से स्नेह -आदर की जगह तिरष्कार और अपमान मिला है ।
विधवा विवाह की कानूनी मान्यता होने के बावजूद भी लोग इन्हें अपनाने से कतराते हैं । काशी वृंदावन इन्हें 'स्वर्ग का पड़ाव' बता कर भेजा जाता है। यहां इनकी दुर्गति किसी से छिपी नहीं है । प्रत्येक दृष्टिकोण से इनका शोषण होता है । परवरिश करने की समस्या तथा जायदाद हथियाने के लालच से इनके सम्बन्धी इन्हें यहां भेजते हैं । सरकार कोई ऐसी नीति बनाये जिससे विधवा को अपनाने वालों को प्रोत्साहन मिले और समाज में विधवा का सम्मान हो तथा माता-पिता या सास-ससुर को भी विधवा बेटी या बहू का पुनर्विवाह अवश्य करना चाहिए ताकि उसे परित्यक्त जीवन न बिताना पड़े ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.10.2021
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