मीठी मीठी 646 : ( संस्मरण 3) : सोच से शौंच बदला
वर्ष 1975 -76 के दौरान मैं पूर्वोत्तर के एक सीमावर्ती राज्य में सेवारत था । तब वहां के गावों की सेनिटेसन (स्वच्छता) हालात ठीक नहीं थे । लोग अपने घर के पास ही खुले में शौच करते थे । उस शौच से उनके सूवर पलते थे लेकिन गन्दगी बहुत थी । स्वच्छता अभियान के दौरान एक दुभाषिये के साथ मुझे वहां के एक गांव में भेजा गया । मैंने ग्रामवासियों को खुले में शौच से होने वाले सभी दुष्प्रभावों के बारे में समझाया और सेनिटरी इंजीनियरिंग के तरीके से स्थानीय हालात को देखकर शैलो ट्रैंच तथा डीप ट्रैंच लैट्रिन बनाने का डिमोंस्ट्रेसन दिया ।
गांव वाले यह सब देख-सुन कर मुझ से नाराज हो गए और मुझे अपना दुश्मन समझने लगे। उनका कहना था, "ये आदमी हमारे सूवरों को मारना चाहता है ।" दुभाषिये ने मुझे सारी कहानी समझाई । इसके बाद मैंने उन्हें मक्खियों से होने वाले रोग, जल -जनित रोग तथा कृमिरोग के बारे में समझाया । वहां कई लोग इन रोगों से ग्रसित भी थे । गांव के मुखिया, दुभाषिये के सहयोग और मेरे प्रयास से उन लोगों ने खूब मंथन किया और खुले में शौच करना बंद कर दिया ।
एक महीने के बाद स्वास्थ्य निदेशक के आदेश से मुझे उस क्षेत्र के मूल्यांकन के लिए पुनः भेजा गया । गांव की दशा बदल चुकी थी । गांव से मक्खियों की भनभनाहट दूर हो चुकी थी और मेरे प्रति उनकी नाराजी भी दूर हो चुकी थी । इस चर्चा से मैं कहना चाहता हूं कि यदि लोग मंथन करें तो वे अवांच्छित प्रथा- परम्परा और अंधविश्वास के सांकलों को तोड़ सकते हैं और स्वस्थ रह सकते हैं।
यह भी बताना चाहूंगा कि पी एम साहब का कथन, "जो मुंह से तो वंदेमातरम कहते हैं और धरती में जहां- तहां कूड़ा डालते हैं, यह वंदेमातरम नहीं है" बिलकुल सत्य और सटीक है । हम सब देश के स्वच्छता अभियान को जहां -तहां कूड़ा डाल कर पलीता लगा रहे हैं । सभी मक्खी और मच्छर जनित रोग गंदगी के कारण तथा पानी जमा होने के कारण फैलते हैं। स्मरण रहे कि स्वच्छता अभियान कोई नया नहीं है । अब तक के सभी 14 प्रधानमंत्रियों और 14 राष्ट्रपतियों ने इसकी चर्चा की है और स्वतंत्रता के बाद से चले आरहे इस स्वच्छता अभियान को गति दी है परन्तु यह तीन कदम आगे और दो कदम पीछे चला जाता है। इस सच्चाई को निगम बोधघाट दिल्ली पर यमुना नदी में या हरिद्वार से गंगासागर तक किसी भी घाट पर गंगा नदी में देखा जा सकता है या किसी भी रेल पटरी के दोनों ओर देखा जा सकता है। हम दिल्ली मैट्रो के अंदर स्वच्छता कानून मानते हैं और मैट्रो से उतरते ही अपने पुराने ढर्रे में आ जाते हैं। इस बीच दिल्ली के चांदनी चौक को स्वच्छ किया, कुछ नया रूप दिया परन्तु गुटका थूकने वालों ने पलीता लगाना शुरू कर दिया है। हम कब बदलेंगे ? हम कब सुधरेंगे ? पूछता है भारत ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.09.2021
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