खरी खरी - 929 : संतों को पहचानें
मानव सेवा करने पर अल्बानिया में जन्मी भारतीय नागरिक नोबल पुरस्कार एवं भारतरत्न सुशोभित मदर टेरेसा को मरणोपरांत 'संत' सम्मान से विभूषित किया गया। मदर टेरेसा सेवाभाव, विनम्रता, करुणा, सयंम और मानवता की साक्षात् मूर्ति थी । तुलना करने के लिए उनके समकक्ष दूर तक कोई मनुष्य/मनीषी नजर नहीं आते। 'संत' कहलाये जाने के लिए अवश्य ही कोई शर्त/संहिता होनी चाहिए। आज हम किसी भी उजले या रंगे हुए वस्त्रधारी, दाड़ी -केशधारी और शब्द-जाल के आखेटक को कुछ प्रायोजित तथाकथित साधकों- शिष्यों या चाटुकारों के कहने पर संत कहने लगते हैं।
हम इन स्वयंभू संतों के आचरण, दिनचर्या और समाज के प्रति इनके समर्पण को न देखते हैं और न परखते हैं । क्रोध, लोभ ,कामुकता और भौतिकवाद से भरे हुए इन पाखंडियों की तथाकथित तंत्र- मन्त्र विद्या पर विश्वास करने लगते हैं। जो संत फ़कीर होते हैं, उनके पास अरबों रुपए का कारोबार नहीं होता । वे वास्तव में समाज सुधारक होते हैं। कबीर, नानक, रैदास, ज्ञानेश्वर, जैसे कई संत इतिहास ने देखें हैं । आज साधू- संत वेश में कुछ पाखंडी महिलाओं से एकांत में मिलने की चाह रखते हैं, धन एकत्र कर रहे हैं और भू-माफिया बन गए हैं । कुछ ऐसे ही असंत सजा भी भुगत रहे हैं । संतों के नाम पर कलंक लगाने वाले इन पाखंडियों से सचेत रह कर इन्हें समाज से दूर रखने की आज परम आवश्यकता है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
18.09.2021
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