Saturday 18 September 2021

Bhagya aur Bhagwan : भाग्य और भगवान

बिरखांत – 402  : भाग्य और भगवान
  
    कुछ मित्र ‘भाग्य और भगवान्’ पर भी गिच खोलने को कहते हैं | हमने हाल ही में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई | बहुत कम लोगों ने कृष्ण के उस अमर सन्देश “कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान” की चर्चा की जबकि चर्चा इस त्यौहार पर कर्म की ही होनी चाहिए | चारों ओर देखें तो सबके अलग- अलग भगवान, ज्यादातर स्थानीय भगवान् ही उनके अराध्य होते हैं, राम-कृष्ण पीछे रह जाते हैं | हम न राम -कृष्ण की मर्यादा पर चल रहे हैं और न उनकी शिक्षा पर | हम भाग्य और भगवान को दोष देने में हमेशा आगे रहे हैं | बात-बात में ‘अरे यार भगवान् नि लिख दिया, भाग्य में यही लिखा था’ कहना अनुचित है | सिर्फ दो बातों के लिए भगवान् का स्मरण उचित है | पहला- हमें जो भी मिला या हमने अपने परिश्रम से जो भी प्राप्त किया वह सब ‘उसने’ दिया, ऐसा मान कर चलें | इससे हम स्वयं श्रेय न लेकर अहंकार (ईगो) से बचेंगे | दूसरा- हम भगवान् से दुःख, परेशानी और विवशता को सहन करने की शक्ति (ताकत) मांगें ताकि हम उस दौर को झेल कर उबर सकें |

     धन-दौलत, सुख-ऐश-आराम की मांग करना, मन्नत मांगना, अपनी गलती के लिए भाग्य -भगवान पर दोष लगाना, ‘उसको’ यही मंजूर था’ कहना, यह सब अनुचित है | जल में डुबकी लगाने से न पुण्य मिलेगा और न पाप कटेंगे | पुण्य तो परोपकार और राष्ट्र प्रेम से ही प्राप्त होगा, काबा-कैलाश या तीरथ जाने से नहीं | स्वर्ग या तीन लोक का भ्रम भी छोड़ दें | यदि ये होते तो ‘अंकल शैम’ वहाँ कब का पहुँच गया होता | पाप तभी कटेंगे जब उसका उचित प्रायश्चित हो, दिल से क्षमा मांगी जाय और उसकी पुनरावृति न हो | व्यर्थ का आडम्बर, दिखावा तथा अंधविश्वास का लबादा ओड़ कर मन-वचन-कर्म से प्रत्यक्ष या परोक्ष हिंसा करते हुए आगे बढ़ना भी बहुत बड़ा पाप है |

     कुछ लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगेगी परन्तु कहना ही पड़ेगा कि ‘भाग्य और भगवान्’ को दोष देकर हम हमेशा ही अपने बचाव में छतरी खोलते रहे हैं |  भगवान एक अदृश्य शक्ति है जिसे न किसी ने देखा है और न ‘वह’ किसी से मिला है | समय काटने या दुकान चलाने के लिए भलेही कोई कितनी ही ललित, दिल-बहलाव, मनगणत कथाएं- किस्से कह ले परन्तु वास्तविकता यही है | श्रधा हो परन्तु अन्धश्रधा न हो |  श्रधा के पीछे तर्क हो कुतर्क न हो, विवेक –विज्ञान हो अज्ञान न हो | ये सब बातें मैं मात्र दोहरा रहा हूं | विवेकशील व्यक्तियों द्वारा  यह सब पहले ही व्यक्त किया जा चुका हैं |

पूरन चन्द्र कांडपाल
19.09.2021

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