Wednesday, 30 September 2020

Manthan se badli soch :मंथन से बदली सोच

संस्मरण - 3 : मंथन से बदली सोच

     वर्ष 1975 -76 के दौरान मैं पूर्वोत्तर के एक सीमावर्ती राज्य में सेवारत था । तब वहां के गावों की सेनिटेसन (स्वच्छता) हालात ठीक नहीं थे । लोग अपने घर के पास ही खुले में शौच करते थे । उस शौच से उनके सूवर पलते थे लेकिन गन्दगी बहुत थी । स्वच्छता अभियान के दौरान एक दुभाषिये के साथ मुझे वहां भेजा गया । मैंने उन लोगों को खुले में शौच से  होने वाले सभी दुष्प्रभावों के बारे में समझाया और सेनिटरी इंजीनियरिंग के तरीके से स्थानीय हालात को देखकर शैलो तथा डीप ट्रेंच लैट्रिन बनाने का डिमोंस्ट्रेसन दिया ।

     गांव वाले यह सब देख-सुन कर मुझ से नाराज हो गए । उनका कहना था, "ये आदमी हमारे सूवरों को मारना चाहता है ।" दुभाषिये ने मुझे सारी कहानी समझाई । इसके बाद मैंने उन्हें मक्खियों से होने वाले रोग, जल -जनित रोग तथा कृमिरोग के बारे में समझाया । वहां कई लोग इन रोगों से ग्रसित भी थे । गांव के मुखिया, दुभाषिये के सहयोग और मेरे प्रयास से उन लोगों ने खूब मंथन किया और खुले में शौच करना बंद कर दिया ।

      एक महीने के बाद स्वास्थ्य निदेशक के आदेश से मुझे उस क्षेत्र के मूल्यांकन के लिए पुनः भेजा गया । गांव की दशा बदल चुकी थी । गांव से मक्खियों की भनभनाहट दूर हो चुकी थी और मेरे प्रति उनकी नाराजी भी दूर हो चुकी थी । इस चर्चा से मैं कहना चाहता हूं कि यदि लोग मंथन करें तो वे अवांच्छित प्रथा- परम्परा - अंधविश्वास के सांकलों को तोड़ सकते हैं ।

     यह भी बताना चाहूंगा कि पी एम साहब का कथन, "जो मुंह से तो 'वंदेमातरम' कहते हैं और धरती में जहां-तहां कूड़ा डालते हैं, यह वंदेमातरम नहीं है" बिलकुल सत्य और सटीक है । हम सब देश के स्वच्छता अभियान को जहां -तहां कूड़ा डाल कर पलीता लगा रहे हैं । स्मरण रहे कि स्वच्छता अभियान कोई नया नहीं है । अब तक के सभी 14 प्रधानमंत्रियों और 14 राष्ट्रपतियों ने इसकी चर्चा की है और इसे गति दी है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.10.2020

Tuesday, 29 September 2020

हमरि री। भाषा भौत भलि

मीठी मीठी - 517 : हमरि भाषा भौत भलि

     हमरि भाषा कुमाउनी-गढ़वाली लगभग 1100 वर्ष पुराणि छ । यैक संदर्भ हमर पास मौजूद छीं । कत्यूरी और चंद राजाओं क टैम में य राजकाज कि भाषा छी । आज लै करीब 400 लोग  कुमाउनी में लेखनी जनर के न के साहित्य कुमाउनी पत्रिका "पहरू" में छपि गो । भाषा संविधान क आठूँ अनुसूची में आजि लै नि पुजि रइ । प्रयास चलि रौछ । सबूं हैं निवेदन छ कि भाषा कैं व्यवहार में धरो । हमार चार साहित्यकार छीं जनूकैं साहित्य अकादमी भाषा पुरस्कार लै प्रदान हैगो ।

     "पहरू" मासिक कुमाउनी पत्रिका लिजी डॉ हयात सिंह रावत (संपादक मोब 9412924897) अल्मोड़ा दगै संपर्क करी जै सकूं । कीमत ₹ 20/- मासिक । य पत्रिका डाक द्वारा घर ऐ सकीं । विगत 10 वर्ष बटि म्यर पास उरातार य पत्रिका पुजैं रै । मी येक आजीवन सदस्य छ्यूँ । बाकि बात आपूं हयातदा दगै करि सकछा । उत्तराखंडी भाषाओं कि त्रैमासिक पत्रिका "कुमगढ़ " जो काठगोदाम बै प्रकाशित हिंछ वीक लै आपूं सदस्य बनि सकछा ।  मी येक लै आजीवन सदस्य छ्यूँ । संपादक दामोदर जोशी 'देवांशु' मो.9411309868, मूल्य ₹ 25/-। पिथौरागढ़ बै कुमाउनी मासिक पत्रिका " आदलि  कुशलि " छपैं रै । येक संपादक डॉ सरस्वती कोहली ( 9756553728 ) दगै संपर्क करी जै सकूं । मूल्य ₹ 30/- छ । अल्माड़ बै ' कुर्मांचल अखबार ' लै छपैं रौ, संपादक डॉ फुलोरिया (9411199805).

     कुमाउनी भाषा में कविता संग्रह, कहानि संग्रह, नाटक, उपन्यास, सामान्य ज्ञान, निबंध, अनुच्छेद, चिठ्ठी, खंड काव्य, गद्य, संस्मरण, आलेख सहित सबै विधाओं में साहित्य उपलब्ध छ । बस एक बात य लै कूंण चानू कि आपणि इज और आपणि भाषा ( दुदबोलि, मातृभाषा ) कैं कभैं लै निभुलण चैन ।

हमरि भाषा भौत भलि, 

करि ल्यो ये दगै प्यार ।

बिन आपणि भाषा बलाइए, 

नि ऊंनि दिल कि बात भ्यार।।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

30.09.2020

Janhit sarvopari : जनहित सर्वोपरि

मीठी -मीठी -516 : जनहित ही सर्वोपरि

   खरी -खरी तो लगातार कह ही रहा हूं । संग में मीठी-मीठी भी गतिमान है  । 24 अप्रैल 2017 को जब देश की आंखें सुकमा में जान देने वाले 25 शहीदों के लिए नम हो रहीं थीं , उसी दिन एक पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार 101 गरीब जोड़े विवाह बंधन में बंध गए । इन 101 जोड़ों में 93 हिन्दू, 6 मुस्लिम,1 सिक्ख तथा 1 ईसाई समुदाय से थे ।

     गरीब परिवारों के हित किये गए इस सर्वप्रिय विवाह समारोह का आयोजन सहारा शहर लखनऊ में सहारा इंडिया परिवार द्वारा किया गया । वर्ष 2004 से आरंभ इस सामूहिक विवाह समारोह का यह 12वां आयोजन था जिसमें तब तक 1212 जोड़े विवाह बंधन में बंध गये थे । इन सभी जोड़ों को गणमान्य लोगों ने आशीर्वाद दिया एवं गृहस्थी की बुनियादी वस्तुएं भेंट की गईं ।

    कई लोग समाज में कई तरह के कार्य करते हैं जिनमें जनहित के बजाय आडम्बर, पाखंड, अंधविश्वास, रूढ़िवाद, ढकोसला और दिखावा अधिक होता है ।  ऐसे कृत्यों से दूर रह कर जनहित - देशहित  के कार्यों में योगदान देना ही समाजोपयोगी कार्य कहा जायेगा । जल-स्रोतों का संरक्षण - स्वच्छता, पौध रोपण और साहित्य - संस्कृति प्रसार करते हुए धरा का श्रंगार करना भी सर्वोत्तम कर्म है । सहारा इंडिया एवं इसी तरह की सोच रखने वालों तथा ऐसी गतिविधियों में व्यस्त मनिषियों को दिल से साधुवाद ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.09.2020

puraskar : पुरस्कार

खरी खरी - 705 : पुरस्कार के मापदंड ?

       हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार नवाजने का मापदंड क्या है ?  कार्यानुभव, योग्यता, वरीयता, क्षेत्र में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, चाटुकारिता या कुछ और ?

     आज भी हमारे इर्द - गिर्द दिए जाने वाले सरकारी पुरस्कार विवादित होते है चाहे वे पद्म पुरस्कार हों, खेल पुरस्कार हों, विज्ञान पुरस्कार हों, साहित्य पुरस्कार हों या कोई अन्य पुरस्कार ही क्यों न हों । कई बार तो वास्तविक दावेदार को न्यायालय के द्वार भी खटखटाने पड़ते हैं जैसा कि कुछ वर्ष पहले एक अर्जुन पुरस्कार न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दिया गया ।

      पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव में पुरस्कार का हकदार है । यदि वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो यह उस पुरस्कार का अपमान है । योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है । इस तरह पुरस्कृत व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का संदर्भ सदैव सालते रहता है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
27.09.2020

Saturday, 26 September 2020

Purskar ke मापदंड : पुरस्कार के मापदंड

खरी खरी - 705 : पुरस्कार के मापदंड ?

       हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार नवाजने का मापदंड क्या है ?  कार्यानुभव, योग्यता, वरीयता, क्षेत्र में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, चाटुकारिता या कुछ और ?

     आज भी हमारे इर्द - गिर्द दिए जाने वाले सरकारी पुरस्कार विवादित होते है चाहे वे पद्म पुरस्कार हों, खेल पुरस्कार हों, विज्ञान पुरस्कार हों, साहित्य पुरस्कार हों या कोई अन्य पुरस्कार ही क्यों न हों । कई बार तो वास्तविक दावेदार को न्यायालय के द्वार भी खटखटाने पड़ते हैं जैसा कि कुछ वर्ष पहले एक अर्जुन पुरस्कार न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दिया गया । 

      पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव में पुरस्कार का हकदार है । यदि वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो यह उस पुरस्कार का अपमान है । योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है । इस तरह पुरस्कृत व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का संदर्भ सदैव सालते रहता है । 

पूरन चन्द्र कांडपाल

27.09.2020

Friday, 25 September 2020

LAKH K KHAAK : लाख क खाक

खरी खरी -704 : लाखक है जां खाक

मंखियैक जिंदगी 


लै कसि छ,


हव क बुलबुल


माट कि डेल जसि छ ।

जसिक्ये बुलबुल फटि जां


मटक डेल गइ जां,


उसक्ये सांस उड़ते ही


मनखि लै ढइ जां ।

मरते ही कौनी 


उना मुनइ करि बेर धरो,


जल्दि त्यथाण लिजौ


उठौ देर नि करो ।

त्यथाण में लोग कौनी


मुर्द कैं खचोरो,


जल्दि जगौल


क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।

चार घंट बाद


मुर्द राख बनि जां,


कुछ देर पैली लाख क छी


जइ बेर खाक बनि जां ।

मुर्दा क क्वैल बगै बेर


लोग घर ऐ जानीं,


घर आते ही जिंदगी की 


भागदौड़ में लै जानीं ।

मनखिये कि राख देखि 


मनखी मनखी नि बनन,


एकदिन सबूंल मरण छ


यौ बात याद नि धरन ।

(कोरोना संक्रमणल देश में तिरानबे हजार है ज्यादा लोग अकाल मौत में मरि गईं जमें करीब पौण तीन सौ डाक्टर लै छीं । इनुकैं श्रद्धांजलि । सबूंल आपण बचाव करण चैंछ और मास्क लगूण चैंछ। )

पूरन चन्द्र काण्डपाल


26.09.2020

Thursday, 24 September 2020

Wah Bhoot naheen tha : वह भूत नहीं था !

संस्मरण - 2  : वह भूत नहीं था !

      वर्ष 1995 में मेरा पहला उपन्यास ‘जागर’ हिंदी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित हुआ जो बाद में ‘प्यारा उत्तराखंड’ अखबार में किस्तवार छपा भी | जिसने भी इसी पढ़ा उसे अच्छा लगा | एक दिन महानगर दिल्ली में बड़े सवेरे उपन्यास का एक पाठक रेशम मेरे पास आकर बोला, “कका आज दिन में तीन बजे हमारी घर भूत की जागर है, मेरी पत्नी पर भूत नाच रहा है | एक कमरे का मकान है, बैठने की जगह नहीं है इसलिए केवल आपको और एकाध सयानों को बुला रहा हूँ | डंगरिया आएगा, दास नहीं है | वह बिना ढोल -हुड़के के ही हात –पात जोड़कर नाच जाता है | आप जरूर आना |” तीन वर्ष पूर्व रेशम की शादी हुयी थी | पांच लोगों के इस परिवार में माता-पिता, एक भाई और पति- पत्नी थे | परिवार शिशु के लिए भी तरस रहा था |

       मैं ठीक तीन बजे वहाँ पहुँच गया | वहाँ इन पाँचों के अलावा पड़ोस के दो जोड़ी दम्पति और डंगरिया मौजूद थे | धूप-दीप जली, डंगरिया दुलैंच में बैठा और रेशम के पिता जोड़े हुए हाथों को माथे पर टिका कर गिड़गिड़ाने लगे, “हे ईश्वर- नरैण, ये मेरे घर में कैसी हलचल हो गयी है ? कौन है ये जो मेरी बहू पर लगा है | गलती हुई है तो मुझे डंड दे भगवन, इसका पिंड छोड़ |” डंगरिया कापने लगा और बहू भी हिचकोले-हिनौले खेलने लगी | बहू की तरफ देख रेशम के पिता जोर से बोले, “हम सात हाथ लाचार हैं, तू जो भी है इसे छोड़, मुझे पकड़, मुझे खा |” वे डंगरिये की तरफ देख बोले, “तू देव है, दिखा अपनी करामात |” इस बीच बहू बैठे- बैठे सिर के बाल हिलाती हुई डंगरिये ओर बढ़ी | डंगरिये ने उसे बभूत लगाना चाहा जिस पर वह बेकाबू घोड़ी की तरह बिदक पड़ी मानो वह उस पर झपट पड़ेगी | डंगरिया बचाव मुद्रा में आ गया और डरी हुयी आँखों से मुझे देखने लगा |

      सभी इस दृश्य से दंग थे | रेशम मेरी तरफ देख कर बोला, “यह तो हद हो गयी | इसका कोई गुरु- गोविंद ही नहीं रहा | ऐसा डंगरिया नहीं मिला जो इस पर सवा सेर पड़ता | परिवार की परेशानी देख मेरे मन में एक विचार आया और मैं उठकर बहार जाने वाले दरवाजे के पास बैठ गया | मैंने गंभीर मुद्रा बनाते हुए जोर से कहा, “बिना गुरु की अंधेरी रात ! बोल तू है कौन ? किस गाड़- गधेरे से आया है ? खोल अपनी जुबान | आदि-आदि..” मेरी भाव-भंगिमा और बोल सुन कर सभी समझने लगे कि मैं उस डंगरिये से बड़ा डंगरिया हूँ | मेरी ओर देखकर रेशम की पिता बोले, “परमेसरा रास्ता बता दे, मेरा इष्ट –बदरनाथ बन जा |” मैंने उन्हें संकेत से चुप कराया | मैं रेशम की पत्नी की तरफ देख कर बोला, “तू बोलता क्यों नहीं ? नहीं बोलेगा तो मैं बुलवा के छोडूंगा | मसाण- भूत का इलाज है मेरे पास |” वह नहीं बोली | मैंने रेशम के ओर देखकर जोर से कहा, “धूनी हाजिर कर दे सौंकार |” रेशम- “परमेसरा यहाँ धूनी कहाँ से लाऊँ?” मैं- “धूनी नहीं है तो स्टोव हाजिर कर दे |” रेशम तुरंत रसोई से स्टोव, पिन और माचिस ले आया | मेरे संकेत पर उसने स्टोव जलाया | मैं- “चिमटा हाजिर कर दे सौंकार |” वह भाग कर चिमटा ले आया | सभी मुझे देव अवतार में समझ रहे थे जबकि ऐसा नहीं था | मैं स्वयं डरा हुआ था | मैंने ठान रखी थी, यदि रेशम की पत्नी ने मुझ पर आक्रमण कर दिया तो दरवाजे से बाहर खिसक लूँगा |

      मैंने स्टोव की लपटों में चिमटा लाल करते हुए रेशम की पत्नी की तरफ देख कर कहा, “जो भी भूत, प्रेत, पिसाच, मसाण,  छल, झपट तू इस पर लगा है, अगर तेरे में हिम्मत है तो पकड़ इस लाल चिमटे को, वर्ना मैं स्वयं इस चिमटे को तेरे शरीर पर टेक दूंगा |” मैं उसे डराने के लिए बोल रहा था | लाल चिमटे को देख रेशम की पत्नी का हिलना बंद हो गया और सिर पर पल्लू रखते हुए वह धीरे से उठ कर पीछे बैठ गयी | अब मैं निडर हो गया और बुलंदी से बोला, “जो भी तू इस पर लगा था आज तूने इस धूनी- चिमटे के सामने इसका पिंड छोड़ दिया है | आज से इसका रूमना- झूमना, रोना-चिल्लाना, चित्त-परेशानी, शारीरिक-मानसिक क्लेश, रोग- व्यथा सब दूर होनी चाहिए |” इतना कहते हुए मैंने स्टोव की हवा निकाल दी ।

      जागर समाप्त हो चुकी थी | आये हुए डंगरिये ने मुझे अपने से बड़ा डंगरिया समझ कर हाथ जोड़े | रेशम पत्नी को आगे लाया और मुझ से उसे बभूत लगवाया | बभूत लगाते हुए मैंने उससे कहा, “आज से तुम निरोग हो, निश्चिंत हो और निडर हो | खुश रहो, अपने को व्यस्त रखो, अध्ययन करो, खाली मत बैठो | भूत एक बहम है, कल्पना है | खाली बैठने से अवांच्छित, उल- जलूल विचार मन में पनपते हैं | इसीलिये खाली दिमाग को भूत का घर भी कहते हैं | जीवन का एक मन्त्र है कर्म करना, व्यस्त रहना और इश्वर में विश्वास रखना बस |” इतना कह कर मैं उठा और चला आया |

      यह कोई सोची समझी योजना नहीं थी | सबकुछ अचानक हुआ | कई लोग मुझे भूत साधक समझने लगे | जब भूत है ही नहीं तो साधूंगा क्या ? यह एक भ्रम -रोग है जो यौनवर्जना, वहम, आक्रामक इच्छाओं की अपूर्ति से कुंठाग्रस्त बना देता है और दमन करने पर भावावेश में यह रूप प्रकट होता है | मनुष्य से बड़ा कोई भूत है ही नहीं जो सर्वत्र पहुँच चुका है | रेशम की कहानी हमें यही बताती है की उसकी पत्नी पर कोई भूत नहीं था | अंधविश्वास की सुनी- सुनाई बातों के घेरे में वह कुंठित हो गयी थी | अगले ही वर्ष उनके घर शिशु का आगमन हो चुका था | हमें फल की इच्छा न रखते हुए कर्म रूपी पूजा में व्यस्त रहना चाहिए | अंधविश्वास का अँधेरा कर्मयोग- प्रकाश के आगे कभी नहीं टिक सका है |

पूरन चन्द्र कांडपाल
25.09.2020

meri yaadein : मेरी यादें

संस्मरण - 1 : मेरी यादें

     वर्ष 1964 में 10वीं पास करते ही मैं काम की खोज में निकल गया था । नौकरी करते हुए स्नातकोत्तर शिक्षा (राजनीति शास्त्र में) तथा  तकनीकी स्वास्थ्य शिक्षा में अध्ययन किया । 40 वर्ष की नौकरी में मैंने कई उतार - चढ़ाव देखे । भारतीय सेना में रह कर 1971 के 14 दिन के भारत - पाक युद्ध में देश की सीमा पर भी सेवा दी । जीवन में  बड़े खट्टे - मीठे - कड़ुवे अनुभव भी हुए । अपने अनुभवों को याद करता हूं तो गुजरा जमाना याद आ जाता है । कभी कभी सोचते सोचते अपने आप मुस्कराने लगता हूं । पत्नी देवी कहती है अपने आप पागलों की तरह क्यों हंस रहे हो ? यादें मनुष्य की बहुत बड़ी निधि हैं जिनके सहारे वह दुख - सुख में जी लेता है, समस्याओं से जूझ सकता है । मैं सोसल मीडिया में विगत 7- 8 वर्ष से कुछ शीर्षकों ( बिरखांत, खरी खरी, मीठी मीठी, स्मृति, दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै ( कुर्मांचल अखबार अल्मोड़ा) और ट्वीट ) के अन्तर्गत कुमाउनी और हिंदी में कलमघसीटी कर रहा हूं जिनकी कुल संख्या 2724 ( 'दिल्ली चिठ्ठी ' इसमें नहीं है जिनकी संख्या 300 से अधिक है ) हो गई है जिन्हें मेरे मित्र, आलोचक, पाठक आदि सभी पढ़ते हैं और अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं तथा मेरा मार्ग दर्शन भी करते हैं । मैं इन सबका आभारी हूं ।

      मैं बदलाव का पक्षधर हूं । कट्टरवाद को अनुचित समझता हूं । रूढ़िवाद और अंधश्रद्धा से भरी परंपराओं में शिक्षा के सूर्योदय के साथ बदलाव होना चाहिए । शिक्षा के प्रकाश से ही अंधेरा मिटेगा । अंधेरा मिटाने के लिए दीप प्रज्ज्वलित करना ही होगा । इसी सोच से पढ़ना - लिखना मेरा शौक बन गया । मैं आजीवन छात्र बन कर ही रहना चाहता हूं । विगत 40 वर्षों में 30 किताबों ( 17 हिंदी और 13 कुमाउनी )  की रचना भी कब हो गई पता नहीं चला । अब एक नए शीर्षक ' संस्मरण ' के अन्तर्गत कुछ संजोई हुई यादों को अपने पाठकों से साझा करने का मन है । कितना सफल होता हूं यह तो समय बताएगा । शीघ्र ही नया शीर्षक ' संस्मरण ' आरम्भ होगा तथा साथ ही पुराने शीर्षक भी गतिमान रहेंगे । मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपका स्नेह बरसते रहेगा जिससे मेरी कलम घसीटी चलते रहेगी ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.09.2020

Tuesday, 22 September 2020

Mohan chander sharma Ashok chakra : मोहन चंद्र शर्मा अशोकचक्र

स्मृति - 513 : मोहन चंद्र शर्मा, अशोक चक्र   (मरणोपरांत)

    आज 23 सितम्बर, शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा , अशोक चक्र (मरणोपरांत ) क जनम दिन छ । कएक वीरता सम्मानोंल पुरस्कृत शर्मा ज्यू 19 सितम्बर 2008 हुणि दिल्ली में कर्तव्य निभाते हुए शहीद हईं । इंस्पेक्टर शर्मा (मासीवाल) दिल्ली पुलिसाक  एकमात्र अशोक चक्र विजेता छीं । उनार बार में एक लेख मेरि किताब " महामनखी " बै यां उद्धृत छ। परम वीर शहीद कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
23.09.2020

Monday, 21 September 2020

Mobile ka prem rog : मोबाइल का प्रेम रोग

खरी खरी - 520 : मोबाइल का प्रेम रोग


      आजकल आप कहीं भी नज़र डालिए -  (कोरोना के दौर में अधिक )घर, बाहर, मैट्रो, रेल , बस, पार्क, कोई भी समारोह, राह में चलते हुए या सैर करते हुए, आपको अधिकतर लोग मोबाइल फोन से चिपके हुए मिलेंगे या कान में लीड डाल कर दुनिया से कटकर घूमते हुए मिलेंगे या मोबाइल की ओर देखकर अपने आप हंसते हुए मिलेंगे । बताया जाता है कि देश के अधिकतर शहरी युवक - युवतियों के पास स्मार्ट फोन है । कुछ लोग तो फोन में लाइक या चैटिंग या गीत - संगीत देखने - सुनने में इतने दीवाने हो गए हैं कि उन्हें समय पर खाने या सोने का भी होश नहीं है । कई बार तो लोग सड़क पर चलते हुए एक दूसरे से या किसी वाहन से टकरा जाते हैं । बच्चों या परमेश्वरी से बात करने का समय नहीं है । घर में चार वयस्क हैं चारों अपने अपने फोन में तल्लीन हैं, कोई किसी से बात नहीं कर रहा । तल्लीनता सेंड या फारवर्ड में है या वीडियो देखने में है या बहस - चैटिंग में हम खोए हुए हैं ।

         इसे हम फोन तल्लीनता नहीं कहेंगे बल्कि यह एक लत है या एक रोग की गिरफ्त है । कुछ साल पहले जब मोबाइल नहीं था तो ऐसी हालत नहीं थी बल्कि व्यक्ति समाज या परिवार से मिलता था । जुड़ा तो वह अब भी है परन्तु उन मित्रों से जुड़ा है जो हवा में हैं । गुलदस्ता, चाय कप, मॉडल, मूर्ति, भगवान के चित्र, कार्टून, पेड़, पहाड़, दृश्य, पोर्न, अश्लील चुटकुले आदि फारवर्ड करना सबसे बड़ा या प्राथमिक कार्य मोबाइल में हम करने लगे हैं । हम क्या कर रहे हैं हमें नहीं मालूम ? फोन का सदुपयोग भी है जो बहुत कम होता है जबकि फोन है ही सदुपयोग के लिए या जानकारी बढ़ाने के लिए । जब दो घंटे लगातार फोन के प्रयोग से निजात मिले तो स्वयं से इस मोबाइल फोन में बिताए गए समय का हिसाब तो मांगना चाहिए कि आंखिर बीते दो घंटों में हमने क्या किया ?

       जो लोग इस वास्तविकता को समझते हैं कि वे फोन रोग या लत से ग्रस्त हो चुके हैं उन्हें फोन के नोटिफिकेशन बंद करने चाहिए । किसी को कोई खास बात करनी होगी तो आपको फोन तो आ ही सकता है । रात्रि में या दिन में कुछ घंटे फोन का स्वीच आफ करें । फोन का एक अनुशासन बनाएं और उस पर अटल रहें । लगातार फोन का प्रयोग हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र ( Immune system )  को कमजोर कर देता है जो बहुत खतरनाक बात है । अपने रोग देने वाले फोन को हमने स्वयं अपना शत्रु बना दिया है । क्या इसी शत्रुता के लिए या स्वयं को रोगी बनाने के लिए हमने स्मार्ट फोन खरीदा था ?

पूरन चन्द्र कांडपाल

22.09.2020

Sunday, 20 September 2020

Alag thakuli ni bajau : अलग थकुली नि बजौ

खरी खरी - 519 : अलग थकुली नि बजौ

देशा का मिलि गीत कौ
अलग थकुली नि बजौ ।

एकै उल्लू भौत छी
पुर बगिच उजाड़ू हूँ
सब डवां में उल्लू भै गयीं
बगिचौ भल्याम कसी हूँ ।
गिच खोलो भ्यार औ
भितेर नि मसमसौ, देशा क ....

समाओ य देशें कें
हिमाल धात लगूंरौ
बचौ य बगीचे कें
जहर यमे बगैँ रौ ।
उंण नि द्यो य गाड़ कें
बाँध एक ठाड़ करौ, देशा क .....

उठो आ्ब नि सेतो
यूं उल्लू तुमुकें चै रईं
इनू कें दूर खदेड़ो
जो म्या्र डवां  में भै  रईं ।
यकलै यूं नि भाजवा
दग डै जौ दौड़ी बे जौ . देशा क .....

शहीदों कें याद करो
घूसखोरों देखि नि डरो 
कामचोरों हूँ काम करौ
हक़ आपण मागि बे रौ ।
अंधविश्वास क गव घोटो
अघिल औ पिछाड़ी नि रौ.
देशा क मिलि गीत कौ
अलग थकुली नि बजौ ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
21.09.2020

Saturday, 19 September 2020

Dedhbhakti की paribhasha : देशभक्ति की परिभाषा

खरी खरी - 518 : देशभक्ति की परिभाषा

    आप लोग अक्सर देशभक्ति के लेख पढ़ते होंगे या भाषण सुनते होंगे । आजकल कुछ लोग देशभक्ति के प्रमाण पत्र भी देने लगे हैं । जो उनके मन कैसी नहीं बोलेगा वह देशभक्त नहीं है । ऐसे कुछ लोग सड़क पर गुटका थूकते हैं, कूड़ा डालते हैं, हुड़दंग मचाते हुए भारत माता की जय - वन्देमातरम कहते हैं और वे स्वयं को देश भक्त कहते हैं । हमारे नेता स्वछता रखने वालों और छोटा परिवार रखने वालों को देशभक्त कहते हैं जिसकी सराहना होनी चाहिए और उनकी बात का अनुपालन होना चाहिए ।

        वास्तविक देशभक्तों के अनुसार देशभक्ति चीखने - चिल्लाने में नहीं, शिष्ट भाषा और व्यवहार में प्रकट होती है। खुद बेहतर इंसान बनना देशभक्ति है, नफरत मिटाना और लोगों में इंसानियत जगाना देशभक्ति है । जाति, धर्म की कट्टरता से लड़ना, आपसी सौहार्द पैदा करना, अंधश्रद्धा को त्यागना, विवेक से कार्य करना, अंहकार छोड़ना, दूसरों को अपने जैसा इंसान समझना और उनका सम्मान करना देशभक्ति है । उन्माद से बचना और बचाना, उन्माद पर नियंत्रण रखना तथा सबके कल्याण की कामना करना देशभक्ति है ।  यदि हमारे अंदर इस देशभक्ति की कमी है तो सबसे पहले इस कमी को दूर करते हुए हमें स्वयं में देशभक्ति जगानी होगी तभी हम किसी को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने का हक रखते हैं । जयहिंद ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

20.09.2020