Thursday 28 March 2019

Kabootar : कबूतरों को दाना

बिरखांत – 257 : पक्षियों को दाना


     अक्सर लोग पक्षियों को दाना- पानी डाल कर पुण्य कमाने की बात करते हैं | प्रकृति का एक नियम है कि यहाँ सबके लिए प्राकृतिक तौर पर भोजन- पानी उपलब्ध है | चिड़िया किसी से कुछ नहीं मांगती, खुद अपने लिए दाना- दुनका चुग लेती है | बाज किसी से नहीं मांगता, अपना शिकार ढूंढ लेता है | चील, उल्लू, चमगादड़ से लेकर कबूतर, गौरैया और हमिंग बर्ड तक सब अपना- अपना भोजन ढूंढ ही लेते हैं | इनकी संख्या प्रकृति से ही संतुलित रहती है बसर्ते लोग इनका शिकार न करें | यदि कभी –गौरैया कम हुयी है तो वह भोजन की कमी से नहीं बल्कि मनुष्य द्वारा दवा के नाम पर शिकार हुयी है | गिद्ध कम हुए तो किसी ने मारे नहीं बल्कि दवाओं के जहर से मृत पशु को खाने से मर गए | केवल आपदा को छोड़कर कर कुदरत में संख्या संतुलन हमेशा बना रहता है |


     शहरों में विशेषतः महानगरों में कबूतरों को देखा- देखी दाना- पानी डालने की होड़ सी लग गयी है | फलस्वरूप इनकी संख्या तेजी से बढ़ गयी है | इतिहास में भलेही कबूतर कभी डाक पहुंचाने का काम करते होंगे परन्तु आज कबूतर मनुष्य को बीमारी फैला रहे हैं | इनसे प्यार- दुलार मनुष्य के लिए दुखदायी हो सकता है | कबूतरों द्वारा घरों के आस-पास डेरा जमाये जाने से लोग दमा, ऐलर्जी और सांस सम्बन्धी लगभग दर्जनों बीमारियों के चपेट में आ सकते हैं | कबूतर के बीट जिसमें से बहुत दुर्गन्ध आती है, और हवा में फ़ैली उनके सूक्ष्म पंखों (माइक्रोफीदर्स) से जानलेवा श्वसन बीमारियाँ हो सकती हैं |


     दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित ‘पटेल चैस्ट इन्स्टीट्यूट दिल्ली’ के अनुसार कबूतर की बीट से ‘सेंसिटिव निमोनाइटिस’ होता है जिसमें बीमार को खांसी, दमा, सांस फूलने की समस्या हो सकती है | कबूतरों के पंखों से ‘फीदर डस्ट’ निकलती है जो कई बीमारियों की जड़ है | यह समस्या कबूतरों के सौ मीटर दायरे तक गुजरने वाले व्यक्ति पर पड़ सकती है | इसके बीट और फीदर डस्ट से करीब दो सौ किस्म की ऐलर्जी होती है | इनके पंखों की धूल से धीरे- धीरे फेफड़े जाम होने लगते हैं और छाती में दर्द या जकड़न होने लगती है |


     पर्यावरणविदों का मानना है कि कबूतरों की संख्या बढ़ने और इनसे जनित रोग लगाने के लिये इंसान ही जिम्मेदार है | जगह- जगह पुण्य के नाम पर दाना डालने से कबूतरों की प्रजनन शक्ति बढ़ रही है जो पर्यवरण  के लिए बेहद खतरनाक है | उनका मानना है कि पक्षियों को दाना खुद ढूढ़ना चाहिए | जब पक्षी अपना भोजन खुद ढूंढ रहा होता है तो उसकी प्रजनन क्षमता संतुलित रहती है | कबूतरों के लिए रखे गये पानी से भे बीमारियाँ फैलती हैं |

     अतः पक्षियों को अपना काम स्वयं करने दें तथा पर्यावरण के प्राकृतिक संतुलन में दखल न दें | कुछ लोग पेड़ों के तने के पास चीटियों को भी आटा डालते हैं | इससे पेड़ उखड़ते है क्योंकि चीटियाँ आटे को जमीन में ले जाती और बदले में मिट्टी बाहर लाती हैं | ऐसे पेड़ हल्के तूफ़ान से ही गिर जाते हैं  | चीटियाँ हमारे दिए भोजन की मोहताज नहीं हैं | वे अपना भोजन खुद तलाश लेती हैं | अबारा कुत्तों को भी लोग बड़े दया भाव से खाना डालते हैं परिणाम यह होता है कि वे भोजन की खोज में नहीं जाते और एक ही स्थान पर उनकी संख्या बढ़ते रहती है जिससे कुत्ते काटने के केस बढ़ते जा रहे हैं | कबूतर, चीटी या कुत्ते के बजाय किसी जनहित संस्था, वृक्ष रोपण, अनाथालय या असहाय की मदद पर खर्च करके भी पुण्य कमाया जा सकता है |


पूरन चन्द्र काण्डपाल

29.03.2019


No comments:

Post a Comment