Friday 23 November 2018

Naheen rahe himanshu joshi : नहीं रहे हिमांशु जोशी

नहीं रहे हिमांशु जोशी

       सुप्रसिद्ध साहित्यकार हिमांशु जोशी जी का जन्म 4 मई 1935 को उत्तराखंड के ग्राम जोस्युड़ा जिला चंपावत (उत्तराखंड ) में हुआ और 83 वर्ष की जीवन यात्रा के बाद 23 नवम्बर 2018 को उनका देहावसान हो गया । उनका निधन हिंदी साहित्य की एक अपूर्णीय क्षति है ।

     हिमांशु जोशी ने उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, रूपक, लेख, यात्रा विवरण, संस्मरण, जीवनी, साक्षात्कार, रेडियो नाटक, संपादित कथा संग्रह एवं बाल साहित्य के अतिरिक्त पत्रकारिता में भी सफलतापूर्वक अपनी लेखनी चलाई और साहित्य जगत में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनकी भाषा एक आम आदमी की भाषा थी जिसे जनमानस बड़ी सहजता से समझ लेता था ।

       अपने जीवन जीवनकाल में हिमांशु जोशी ने 7 उत्कृष्ट उपन्यासों का सृजन किया जिनमें- अरण्य, महासागर, छाया मत छूना मन, कगार की आग, समय साक्षी है, तुम्हारे लिए और सु-राज प्रमुख है हिमांशु जोशी के 18 कहानी संग्रह भी प्रकाशित  हैं । 7 लघु कथाओं का सृजन भी उन्होंने किया । 3 काव्य संग्रहों का सृजन हिमांशु जोशी जी द्वारा किया गया जिनमें से अग्नि संभव और नील नदी का वृक्ष प्रकाशित संग्रह हैं और 'एक आंखर की कविता' अप्रकाशित है।

      जोशी जी के सुप्रसिद्ध उपन्यास 'कगार की आग' के पुस्तक रूप मेंं 17 संस्कण छपे । इस उपन्यास का लखनऊ, दिल्ली, नैनीताल और देहरादून में नाट्य मंचन भी हुआ तथा इसका कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ । आकाशवाणी से भी यह उपन्यास प्रसारित किया गया । हिमांशु जी पर कई विद्यार्थियों ने शोध भी किया ।

       लगभग 29 वर्ष तक 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' से भी वे जुड़े रहे । जीवनपर्यंत अविरल लिखते हुए जोशी जी के साहित्य का सम्मान भी हुआ । उन्हें हिंदी अकादमी दिल्ली सहित कएक संस्थाओं ने सम्मानित भी किया । गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित जोशी जी अनेक संस्थाओं के सलाहकार भी रहे । उन्होंने साहित्य की ही कश्ती में कई देशों की यात्रा भी की ।

      आज हिमांशु जोशी जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका अमूल्य साहित्य हमारे बीच है । यह साहित्य अमर है, लोगों के मन- मस्तिष्क में आच्छादित है । हिमांशु जोशी जैसे लेखक कभी भी नही मरते । इन पंक्तियों के लेखक का उनसे कई बार कई विचारगोष्ठियों मिलन भी हुआ जो अब भी चक्षु-सम्मुख है । पुस्तक 'उत्तराखंड एक दर्पण' देख वे बोले 'लिखते रहो' । आज भलेही उनकी चिता की आग बुझ गई परन्तु 'कगार की आग' कभी नहीं बुझेगी । हिमांशु जी को विनम्र श्रद्धांजलि ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.11.2018

No comments:

Post a Comment