Friday 23 November 2018

Khoob gaali do yaro : खूब गाली दो यारो

बिरखांत -239 : खूब गाली दो यारो !!

    कुछ मित्रों को बुरा लगेगा और लगना भी चाहिए | अगर बुरा लगा तो शायद अंतःकरण से महसूस भी करेंगे | सोशल मीडिया में अशिष्टता, गाली और भौंडापन को हमने ‘अशोभनीय’ बताया तो कई मित्र अनेकों उदाहरण के साथ इस अपसंस्कृति के समर्थक बन गए | तर्क दिया गया कि रंगमंच में, होली में तथा कई अन्य जगह पर ये सब चलता है | चलता है तो चलाओ भाई | हम किसी को कैसे रोक सकते हैं | केवल अपनी बात ही तो कह सकते हैं |

       दुनिया तो रंगमंच के कलाकारों, लेखकों, गीतकारों और गायकों को शिष्ट समझती है | उनसे सदैव ही संदेशात्मक शिष्ट कला की ही उम्मीद करती है, समाज सुधार की उम्मीद करती है | मेरे विचार से जो लोग इस तरह अशिष्टता का अपनी वाकपटुता या अनुचित तथ्यों से समर्थन करते हैं वे शायद शराब या किसी नशे में डूबी हुई हालात वालों की बात करते हैं अन्यथा गाली तो गाली है |

     सड़क पर एक शराबी या सिरफिरा यदि गालियां देते हुए चला जाता है तो उसे स्त्री-पुरुष- बच्चे सभी सुनते हैं | वहाँ उससे कौन क्या कहेगा ? फिर भी रोकने वाले उसे रोकने का प्रयास करते हैं परन्तु मंच या सोशल मीडिया में तो यह सर्वथा अनुचित, अश्लील और अशिष्ट ही कहा जाएगा | क्या हमारे कलाकार या वक्ता किसी मंच से दर्शकों के सामने या घर में मां- बहन की गाली देते हैं ? यदि नहीं तो सोशल मीडिया पर भी यह नहीं होना चाहिए ।

     हास्य के नाम पर चुटकुलों में अक्सर अत्यधिक आपतिजनक या द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग भी खूब हो रहा है, यह भी अशिष्ट है | अब जिस मित्र को भी हमारा तर्क ठीक नहीं लगता तो उनसे हम क्षमा ही मांगेंगे और कहेंगे कि आपको जो अच्छा लगे वही बोलो परन्तु अपने तर्क के बारे में अपने शुभेच्छुओं और परिजनों से भी पूछ लें | यदि सभी ने आपकी गाली या अशिष्टता का समर्थन किया है तो हमें जम कर, पानी पी पी कर गाली दें | हम आपकी गाली जरूर सुनेंगे क्योंकि जो अनुचित है उसे अनुचित कहने का गुनाह तो हमने किया ही है |

     आजकल अनुचित का खुलकर विरोध नहीं किया जाता | सब मसमसाते हुए निकल लेते हैं | हम गाली का जबाब भी गाली से देने में विश्वास नहीं करते | कहा है “गारी देई एक है, पलटी भई अनेक; जो पलटू पलटे नहीं, रही एक की एक |” साथ ही हम मसमसाने में भी विश्वास नहीं करते, “मसमसै बेर क्ये नि हुन बेझिझक गिच खोलणी चैनी, अटकि रौ बाट में जो दव हिम्मत ल उकें फोड़णी चैनी |” (मसमसाने से कुछ नहीं होता, निडर होकर मुंह खोलने वाले चाहिए, रास्ते में जो चट्टान अटकी है उसे हिम्मत से फोड़ने वाले चाहिए) | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.11.2018

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