Thursday 29 November 2018

Dilli aaye kisan : दिल्ली आए किसान

खरी खरी - 345 : दिल्ली आये किसान


     कल 29 नवम्बर 2018 से ही दिल्ली के रामलीला मैदान में देश के विभिन्न स्थानों से आए किसानों डेरा डाल दिया । बताया जा रहा है कि किसानों के 200 संगठन इस 'दिल्ली किसान मार्च' में भाग ले रहे हैं । किसान अपनी समस्याओं को लेकर सरकार और देशवासियों को बताना चाहते हैं कि उनके साथ न्याय नहीं हो रहा । उनकी मुख्य मांगों में फसल बीमा योजना में भ्रष्टाचार, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसी भी फसल का नहीं खरीदा जाना, आपदा राहत का सही मूल्यांकन नहीं होना, फसल पर लागत भी नहीं मिलना, नकदी कृषि की बम्पर उपज पर उचित मूल्य नहीं मिलना, किसानों से किये गए वायदे नही निभाना आदि हैं । 30 नवम्बर 2018 (आज) ये किसान रामलीला मैदान से संसद की ओर मार्च करने का इरादा रखते हैं । दिल्ली वालों को इस मार्च से जो कष्ट होगा उसके लिए भी किसानों ने पर्चे बांटकर माफी मांगी है ।

      कुछ महीने पहले तब बहुत दुःख हुआ जब बाजार से ₹ 10/- के डेड़ किलो टमाटर खरीदे । जब बाजार में इतने सस्ते थे तो शायद किसान को (₹1/-) एक किलो टमाटर का एक रुपया मिला होगा । कितनी मेहनत से उगाया जाता है टमाटर वह मैं जानता हूँ  क्योंकि एक जमाने में टमाटर उगाए हैं औऱ बेचे भी हैं । ऐसे हाल में किसान ने टमाटर सड़क पर फैंके और नेताओं ने उसका उपहास किया, उसका मूर्ख कहकर मजाक उड़ाया । जब यही हाल होना है यो फिर कोई किसानी क्यों करे ? वैसे किसान अपने मेहनत से उगाए गए उत्पाद सड़क पर फैंकने के बजाय गरीबों में बांट कर रोष प्रकट कर देते तो उचित होता ।

      फसल ऋण नहीं चुका पाने के कारण विगत वर्षों से ही देश में करीब तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं औऱ यह सिलसिला जारी है । बताया जा रहा है कि 2018 के प्रथम तीन महीनों में केवल महाराष्ट्र में ही करीब 700 किसानों ने आत्महत्या की है जिसका कुछ नेताओं द्वारा उपहास भी हुआ जो बहुत ही शर्मनाक है । पूरे देश में प्रतिदिन दस -बारह किसान प्रसिद्धि पाने के लिए नहीं, लाचारी से आत्महत्या कर रहे हैं । आत्महत्या करना अच्छी बात नहीं है । किसान तो आत्महत्या अंतिम विकल्प के बतौर करता है क्योंकि एक तरफ कर्ज की मार और दूसरी तरफ फसल का भाव नहीं मिलना और समय पर फसल की सरकारी खरीद नहीं होना या खरीद में टालमटोल करना। हताश होकर वह आत्महत्या जैसा क्रूर कदम उठा कर अपने परिजनों को रोता-बिलखता छोड़ जाता है । इस दर्द को हमारे वायदे से मुकरने वाले नीतिनियन्ता समझते क्यों नहीं ? सरकार को मीडिया में किसान समर्थन का ढोल बजाने के बजाय किसानों से किये गए वायदे निभाने चाहिए ताकि वे मौत को गले लगाने से बच सकें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.11.2018

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