उजाले की ओर
मीठी मीठी - 178 : कनफुसी
पढ़ी -लेखी हुणि झुसराम अनपढ़ हूँ झूसी कौनीं, घरोंफना मुसीभ्याकुड़ हूँ क्वे भुरमुसी कौनीं, जो कान भरणियाँ हूँ गौं में हाम चुकुलखोर कौंछी, शहर में यूं शातिरों हूँ कनफुसी कौनीं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल 02.11.2018
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