खरी खरी - 392 : कवि अपनी कविता पर तो चलें !
समाज में कुछ ऐसे कवि, लेखक या साहित्यकार हैं जो अपनी ही कही बात पर नहीं चलते । जो कहते या लिखते हैं उस पर अमल नहीं करते ।
ये लोग पृथ्वी को प्रदूषण से बचाने, पेड़ लगाने, यमुना या अन्य नदियों को गन्दा नहीं करने की खूब बातें करते हैं परंतु समय आने पर खुद उदाहरण पेश नहीं करते । ऐसा यमुना किनारे दिल्ली स्थित निगमबोध घाट पर अक्सर होता है जब ये लोग शव को CNG में दाह करने के बजाय शव की चिता यमुना के किनारे लगाते हैं और नदी को मैली, कुचैली करते हुए उसका प्रदूषण बढ़ाते हैं । यह बात अलग है कि ये लोग यमुना को 'मां' भी कहते हैं ।
इसी तरह कुछ कवि शराब, गुटखा और धूम्रपान के विरुद्ध पढ़ी गई कविता के बाद शराब और बीड़ी- सिगरेट पीते हैं या गुटखा चबाते हैं । यह दुखद है । आप स्वयं को सरस्वती के वरद पुत्र समझते हैं और लोग आपको समाज का मार्ग दर्शन करने वाले कहते हैं । सरस्वती के वरद पुत्र कभी भी किसी प्रकार का नशा नहीं करते । क्या आपका वह लेख, कविता और भाषण जो आपने मंच से पढ़ा या लिखा, सिर्फ औरों के लिए है ? कृपया कविता के माध्यम से कही हुई अपनी बात पर चलें । कथनी -करनी में अंतर न करें । ध्यान रहे, लोग आपको देख रहे हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.03.2019
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