Friday 15 February 2019

Badridatt pandey : बद्रीदत्त पांडे

मीठी मीठी - 237 : कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पांडे जी की 137वीं जयंती

(यह लेख 15.02.2019 को पुलवामा में CRPF के 37 शहीदों के बलिदान से स्तब्ध होने के कारण पोस्ट नहीं कर सका । कल उनकी शहादत पर लिखा था । पांडे जी की जयंती कल थी ।)

     कुमाऊँ केसरी बदरी दत्त पांडे जी का जन्म 15 फरवरी 1882 को विनायक पांडे जी के घर कनखल में हुआ । बाद में वे अल्मोड़ा आये । उन पर विवेकानंद जी और ऐनीवेसेन्ट का प्रभाव था । उन्होंने 1905 नें देहरादून में नौकरी की । वे 1910 तक इलाहाबाद में एक संपादक के साथ रहे । उन्होंने अल्मोड़ा अखबार और शक्ति अखबार नें काम किया । वे गांधी जी के संपर्क में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे । 13 जनवरी 1921 उत्तरायणी के दिन  कुली बेगार के रजिस्टर गोमती-सरयू के संगम बागेश्वर में उनके नेतृत्व में बहाए गए । वे अंग्रेजों के दमन और बंदूक से निर्भीक होकर अहिंसा से स्वतंत्रता की आवाज बुलंद करते रहे और "कुमाऊँ केसरी" कहलाये ।  इस तरह मानव जाति को कलंकित करने वाली कुली बेगार प्रथा का अंत हुआ ।

      वे 7 वर्ष तक अलग- अलग जेलों में बंद रहे । 1937 में उन्होंने "कुमाऊँ का इतिहास" पुस्तक लिखी । वे संयुक्त प्रांत के सदस्य, जिला परिषद के सदस्य, केंद्रीय एसेम्बली सदस्य तथा लोकसभा के सदस्य रहे । 13 जनवरी 1964 को 83 वर्ष की उम्र में उनका देहावसान हो गया । वे एक निर्भीक पत्रकार, कुशल प्रशासक और जन प्रिय नेता थे । उनके नाम से नैनीताल में एक अस्पताल और बागेश्वर में पोस्ट ग्रेज्युएट कॉलेज है । हम ऐसे महामानव को उनकी 137वीं जयंती पर उन्हें और पुलवामा के 37 शहीदों सहित स्वतंत्रता आंदोलन में बलिदान हुए असंख्य शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.02.2019

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