मीठी मीठी - 379 : 'धार वोर - धार पोर ' - दिनेश ध्यानी
3 नवंबर 2019 हुणि हिंदी और गढ़वालि क वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश ध्यानी ज्यूल मिकैं आपण लेखी गढ़वालि कविता संग्रह "धार वोर - धार पोर " गढ़वाल भवन नई दिल्ली में भेंट करी । 70 कविताओंक य कविता संग्रह में 22 छिटगा कविता लै छीं । ध्यानी ज्यूल य किताब वरिष्ठ साहित्यकार दिवंगत भगवती प्रसाद नौटियाल ज्यूक चरणों में भेंट करि रैछ । नौटियाल ज्यू कि भौत याद ऐ किलै कि एक पत्रिका में उनार और म्यार आँखर दगड़ - दगड़ी छपछी भौत पैली। किताब में वरिष्ठ साहित्यकार मदन मोहन डुकलान ज्यूल भलि भूमिका लेखि रैछ । विशेष बात य छ कि ध्यानी ज्यूल य पोथि में करीब तीन दर्जन कलमकारों, कवियों और पत्रकारों कैं याद करि रौछ जनुमें एक नाम म्यर लै छ ।
कविता संग्रह में सबै कविता एक है भाल एक छीं । कैकि चर्चा करूं और कैकि नि करूं है जांरै । फिर लै कविता वन्दना, धार वोर - धार पोर, बुबा जी, पाणी, नाता -रिश्ता, तेरि याद, भेदभाव, फूलदेई और छिटागा भौत भाल और मार्मिक कविता छीं । कविता वन्दना में मां सरस्वती हैं प्रार्थना छ - " बेटि - ब्याटा फरक नि हो कखि, जाति - पाति न हंकार हो ।"
एक कविता, कविता संग्रहक नाम पर लै छ, 'धार वो र - धार पोर' । कविताक भाव देखो -
"अद बाटम च जिंदगानी
इनै उनै ठौर निरै
धार वोर - धार पोर
झट्ट छंटेनु बसौ नि हवै ।"
कविता 'लासनौ पात ' में य दुख प्रकट है रौछ कि खेति बांजि हैगे और एक लासण क पतेल लै हरै गो । कविता ' बुबा जी ' भौत मार्मिक छ । बौज्यू कि याद कवि हृदय में जमि हुई छ, "
"अमणि बुबा जी
नि छन हम्हरा बीच
पण वोंकि बुद्धि -सीख
बा टुल बाथौ पाणी रैंद
हमुथैं दिन रात ।"
कविता ' नाता - रिश्ता ' लै भौत वेदना भरी कविता छ जमें रिश्तों कि चिंता है रैछ -
"मठु -मठु कै, जरा -जरा कैकि
नाता रिश्ता हर्चंणा छन
पीठि का अपणा भै दगड्या
घड़ि म सोरा हूणा छन ।"
एक छिटगा लै देखो -
" सक अर सुबौ न बढै दे
दूरी हमरा दरम्यान
नथर यथगा बुरु
तु बि नि छै, मि बि नि छौं ।"
उम्मीद करनू कि सब पाठकोंल य कविता संग्रह पढ़न चैंछ । कविताओं में उत्तराखंडक धरातल और खुशबू भौत महकि रैछ । जो लै यूं कविताओं कैं पढ़ल उकैं वांकि अन्वार जरूर मिललि । ध्यानी ज्यू कैं भौत - भौत बधै और शुभकामना । संपर्क - 9968502496, 9319667106.
पूरन चन्द्र कांडपाल
06.11.2019
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