खरी खरी - 326 : 'मी टू' को समझने की जरूरत !
मेरे मित्र चनरदा से आज सुबह ज्योंही पार्क में मिलन हुआ मैंने पूछा, "कल सायं घूमने नहीं आये, क्या बात हो गई ? कहीं रामलीला देखने चले गए थे क्या ? चनरदा बोले, "नहीं यार डाक्टर के पास गया था । अखबार में आया था कि 'मीटू' वायरस फैल रहा है । ये 'मीटू' बीमारी क्या है, उसी का पता करने गया था ।"
"तो पता लगा ?"
"हाँ, सब बताया उस भले मानष डाक्टर ने, डिटेल में बताया । बड़ी खतरनाक बीमारी है । दबा हुआ दर्द कभी भी प्रकट हो सकता है । सहन करने की भी एक मियाद होती है । इस बीमारी की घुटन को बरदास्त करना आसान नहीं है । व्यक्ति डिप्रेसन में जा सकता है ।''
"डाक्टर ने इलाज क्या बताया ?"
"डाक्टर बोला, 'यदि वायरस का अटैक खतरनाक हुआ है तो इलाज होना ही चाहिए जैसे कि अशाराम टाइप केस में हुआ परन्तु सबूत पक्के होने चाहिए । और यदि उस तरह का नहीं है तो तब भी बीमारी की रोकथाम के लिए कदम तो उठने ही चाहिए ।''
"तुम्हारा मन क्या कहता है ?"
"मेरे मन की छोड़ो । उसके मन की कहो जिस पर बीती होगी या बीत रही होगी ?"
"फिर भी कुछ निदान तो हो रोग का ?"
" निदान तो है । जैन सम्प्रदाय वर्ष में एक बार "क्षमा दिवस" मनाते हैं । जाने -अनजाने जिनसे अपराध हुआ है वे खुले दिल से अपने अपराध की क्षमा मांगें । प्रायश्चित करें । प्रायश्चित अर्थात अपराध की पुनरावृत्ति न करें । केस पुराने हो गए हैं । यदि विनम्रतापूर्वक माफी मांगेंगे तो पीड़ित भी क्षमा कर देगा ।"
"माफी मांगने का अर्थ अपराध स्वीकार करना हुआ ? छवि खराब होने का डर । यह काम एक सेलिब्रेटी कैसे करेगा ?"
"अपराध करके सेलिब्रेटी बने हो तो पीड़ित को तो चुभेगा ही । अभद्र काम करके दिव्य पुरुष बन गया वह । अब माफी मांग लेगा तो क्या हो जाएगा ?''
"मामला जटिल है । माफी मांगने में ईगो हर्ट होती है ।"
"मीटू की पीड़िताएं यों ही दोष नहीं लगा सकती । यदि आरोपी माफी मांग लेते तो यह बात आगे नहीं बढ़ती ।"
"क्या पीड़िताएं दोषी नहीं हैं ? वर्षों बाद गढ़े मुर्दे खोद रहे हैं । तभी बोल देती ?''
"किसी ने बोला, किसी ने सह लिया । उधर कुआं इधर खाई नजर आई । किसी ने सपोर्ट नहीं किया । चुप रहने की ही सलाह मिली, घर से भी और बाहर से भी ।''
"इसका मतलब सब जगह पुरुष दोषी ?"
"मेरा मानना है छोटी-मोटी बातों को महिलाएं इगनोर करतीं हैं । अपवाद को छोड़कर कोई ऐसा पुरुष नहीं होगा जिसने छात्र जीवन से लेकर सेवानिवृत होने तक जाने-अनजाने किसी न किसी महिला का स्पर्श नहीं किया हो भलेही होली के बहाने ही सही ।''
"चनरदा ने भी ?''
"चनरदा ने होली नहीं खेली क्या?''
"तो आपके अनुसार जिन पुरुषों ने जाने - अनजाने उत्पीड़न किया है उनको क्या करना चाहिए ?"
"अब कितनी बार पूछोगे यार ? सौरी बोलो सौरी । से सौरी ! अगर गलती हुई है तो माफी मांग लो और केस खतम करो । सयाने- समझदार लोगों ने बड़े -बड़े केस क्षमा मांग कर तुरन्त निबटा लिए ।''
"अब ऐसे रोगी मर्द आगे क्या करेंगे ?''
"मीटू' अभियान से बात चर्चा में तो आई और दूर तक चली गई । कएक हिल गए । कएकों की नींद भी हराम हुई होगी । अब कोई भी मर्द उत्पीड़न करने से पहले सौ बार सोचेगा । हम पीड़िताओं के साथ हैं और ''मीटू" ग्रुप से सहानुभूति रखते हैं ।"
(ये चनरदा कौन है ? चनरदा हम -आप में से ही लेखक का एक पुराना किरदार है जो मसमसाने के बजाय बेझिझक गिच खोलने में विश्वास रखता है ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.10.2018
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