खरी खरी - 332 : इंसानियत की डोर
मेरे चारों ओर सब
चोर-लुटेरे ही नहीं हैं,
कुछ इंसानियत की डोर
थामे भी चल रहे हैं ।
मिलावट के धंधे में
व्यस्त नहीं हैं सभी,
कुछ काले कारनामों को
बेनकाब भी कर रहे हैं ।
सब कौवे बगुले गिद्ध
नहीं बने हैं अभी,
कुछ कोयल बुलबुल मोर
की तरह जी रहे हैं,
सूकर गिरगिट मगरमच्छ
नहीं हुए हैं सभी,
कुछ अश्व श्वान गज सी
वफ़ा भी कर रहे हैं ।
घूस-भ्रष्टाचार में अभी
नहीं बिके हैं सब,
ईमानदारी से भी कुछ
गुजारा कर रहे हैं,
अभी सब बेईमानी में
लिप्त नहीं हुए हैं ,
कुछ इसे पाप की
कमाई भी समझ रहे हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.10.2018
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