Friday 5 October 2018

Alochana se pahale manthan:आलोचना से पहले मंथन

खरी खरी - 318 : आलोचना से पहले मंथन

     खरी खरी का यह 318वां एपिसोड महिलाओं तथा बदलाव की बयार के समर्थकों को समर्पित है । मुझ पर मेरे कुछ शब्द-पारखियों ने, आलोचकों ने या निंदकों ने या कुंठितों - कट्टरवादियों - रुढ़िवादी मित्रों ने आरोप लगाए हैं कि मैं जहां भी जाता हूं महिलाओं को भड़काता हूं । मैं अक्सर महिलाओं को संदेश देता हूं कि पति के बैंक एकाउंट के साथ पत्नी का नाम भी आइदर/सर्वाइवर क्लॉज के साथ हो, महिलाओं को ATM कार्ड प्रयोग करना आना चाहिए, स्मार्ट फौन लिया है तो संदेश लिखना आना चाहिए । दुःख -सुख की घड़ी में आपको किसी पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा ।

      महिलाओं का 'जिंदगी का एक मिशन-झाड़ू पोछा और किचन' ही नहीं होना चाहिए । अपने व्यक्तित्व को निखारो । 'गुणों भूष्यते रूपं' अर्थात रूप की शोभा गुणों से है । रूप निखारना, सजना-संवरना जरूरी है परंतु इससे भी जरूरी है व्यक्तित्व का निखरना जिससे किसी को भी पहचान मिलती है । अध्ययन के लिए समय निकालो, समय प्रबंधन करो । सास- बहू के आंसू बहाने वाले तथा पाखंड-अंधविश्वास परोसने वाले टी वी चैनलों से परहेज करो । ज्ञान वर्धक तथा व्यक्तित्व वर्धक चैनल देखो । डर-दब के मत रहो और अपने हक के लिए मुंह अवश्य खोलो और अपने बच्चों पर चौकस निगाह रखो। यदि इस संदेश को मेरे मित्र महिलाओं को भड़काना कहते हैं तो यह आरोप मुझे स्वीकार है और इस तरह का भड़काना मैं जारी रखूंगा ।

     एक आरोप मुझ पर हिन्दू संस्कृति विरोधी होने का भी लगता है । कारण है मेरा पशुबलि और अंधविश्वास का विरोध करना । मैं हिन्दू- मुस्लिम लड़ाने वालों का भी विरोध करता हूं । हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) हमें सबसे पहले मानवता सिखाता है जिसका दर्शन है 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' और 'वसुधैव कुटम्बकम ।' मैं समाज के सौहार्द की बात करता हूं । सूर-तुलसी- कबीर- रहीम- रसखान आदि महामनीषियों का समर्थक हूं । हिन्दू - मुसलमान द्वारा दी गई ईश्वर या अल्लाह के नाम की पशुबलि का मैं विरोध करता हूं । मैं नदी में मूर्तियों सहित सभी प्रकार के विसर्जन  का भी विरोध करता हूं । 

     मैं भू-विसर्जन का समर्थक हूं अर्थात नदी में बहाई जाने वाली वस्तुओं को जमीन के अंदर दबा दो । पानी में डाल कर भी तो उसने मिट्टी ही बनना है । नदी क्यों प्रदूषित हो ? दूध की धारा मूर्ति या नदी में बहाए जाने के बजाय किसी कुपोषित बच्चे के मुंह में जाये तो यह देशहित है । मूर्ति के लिये प्रतीक के बतौर दो बूंद काफी हैं ।  देश में 25% बच्चे कुपोषित हैं और हम दूध इधर-उधर बहा रहे हैं या तांत्रिक के बताने पर कुत्ते को पिला रहे हैं । क्या यह उचित लगता है ?

     अंतिम संस्कार की बात कहूँ तो जहां उपलब्ध है वहां CNG में शवदाह होना चाहिए ताकि नदी बचे, पर्यावरण बचे, पेड़ बचे और प्रदूषण घटे । प्रत्येक त्यौहार तथा विशेष अवसर- तिथि पर एक वृक्ष का रोपण होना चाहिए । पितृपक्ष या नवरात्रि में तो एक पौधा रोपा ही जाना चाहिए । ग्लोबल वार्मिंग के भयानक परिणाम हम देख रहे हैं । कोई इन सब बातों को हिन्दू विरोधी समझता है तो यह उसकी समझ है । भावी पीढ़ी के लिए इस धरा को बचाने का मेरा यह निवेदन जारी रहेगा । आरोप-आलोचना से पहले मंथन- विवेचना जरूरी है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.10.2018

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