Monday 3 January 2022

Apne apne patient : अपने अपने पेटेंट

खरी खरी - 987: सबके अपने अपने पेटेंट

       'अंध' शब्द एक उपसर्ग माना जाता है जो किसी शब्द के आगे जुड़ने से उस शब्द के अर्थ को उलट देता है जैसे भक्त का अंधभक्त, भक्ति का अंधभक्ति, विश्वास का अंधविश्वास और श्रृद्धा का अंधश्रद्धा । सोसल मीडिया में अंधभक्ति के पेटेंट की होड़ लगी है । एक कहता है तू अंधभक्त है तो दूसरा कहता तू महा अंधभक्त है । राजनीतिक समर्थकों और विरोधियों में यह वाक् युद्ध आजकल बहुत जोरों पर है । गाली का उत्तर गाली नहीं होता । गाली का उत्तर धैर्य और संयम से शिष्टता के साथ भी दिया जा सकता । यदि एक व्यक्ति यह कहे कि झूठ नहीं बोलना चाहिए तो अंधभक्ति से सराबोर अंधभक्त सोचेगा यह मुझ से कह रहा है और कीचड़ सनित गाली की पिचकारी उस पर छोड़ देगा । सांच को तप और झूठ को पाप तो कबीर बहुत पहले बता गया एक दोहे में - सांच बराबर....। अंधभक्ति के प्रभाव से ही मनुष्य अंधविश्वासी भी बन जाता है । वह योगेश्वर श्रीकृष्ण की बताई हुई कर्म की राह में चलने के बजाय तांत्रिकों के मकड़जाल की ओर अग्रसर होकर अंततः उस जाल में फंस जाता है ।

        सवाल उठता है कि कौन अंधभक्त है या कौन अंधभक्ति कर रहा है इस का फैसला कौन करेगा ? अपने अपने पेटेंट वाले अंधभक्त किसी की नहीं सुनते क्योंकि अंधभक्ति का प्रभाव बहुत गहरा होता है और अंधभक्ति एक ऐसा क्रोनिक रोग है जो भक्त के विवेक को जड़ से उखाड़ देता है । जब भक्त विवेकहीन हो गया तो फिर वह किसी की नहीं सुनता । सभी जानते हैं कि कुछ असाधू आजकल जेल में हैं लेकिन उनके अंधभक्तों को इन असाधुओंं की करतूत आज भी भलि लगती है क्योंकि विवेक - बुद्धि में तो अंधभक्ति का लेप चढ़ा हुआ है । यदि लेप नहीं होता तो वे जिद की जंजीर से बंधी हुई अंधभक्ति से मुक्त हो जाते । 

        हमारा मानना है कि अंधभक्ति की जगह पर विवेक से भक्ति होनी चाहिए । सच और झूठ की परख होनी चाहिए और जो उचित है उसे मानना चाहिए । हमारी भक्ति अपने संविधान पर एकाग्रित होनी चाहिए जिसे करीब 389 सदस्यों की संविधान सभा में गहरे मंथन के बाद संविधान निर्माण समिति ने  2 साल 11 महीने और 18 दिन में लिखा । संविधान सभा में देशवासियों के सभी वर्ग का प्रतिनिधित्व था । संविधान को लचीला बनाया गया ताकि जरूरत पढ़ने पर अमुक कानून को हटाया जाए या उसमें सुधार किया जाय । अब तक लगभग 121 बार ऐसा हो चुका है । 

        अतः हमें अंधभक्ति के भंवर से बाहर निकलकर देशहित में सोचना चाहिए तथा अंधभक्ति की जगह भक्ति के पेटेंट की बात  करनी चाहिए । अंधभक्त बनकर अंधभक्ति की चालीसा पढ़ते हुए हम अपने कई अजीज मित्रों से व्यर्थ की दुश्मनी भी ले लेते हैं जिससे बरसों की सिंचित मित्रता से एक झटके में हाथ धो बैठते हैं । दूसरी ओर जिनकी अंधभक्ति हो रही है वे तो मौज कर रहे हैं और अंधभक्त आपस में अपना चैन हराम किए हुए हैं । अंधभक्ति के रोग का उपचार भी हमारे पास ही है । हम अपने विवेक की ग्रंथि को जागृत करें और अंधभक्ति का पाठ पढ़ाने वाले असाधुओं की भक्ति से स्वयं को मुक्त करते हुए अपने संविधान, अपने राष्ट्रध्वज, अपने कर्तव्य और अपने अधिकारों के भक्त बनें तथा संविधान प्रदत्त इंद्रधनुषी संस्कृति जिसमें सौहार्द्र, समरसता और अनेकता में एकता है, से स्वयं को सराबोर रखें । जयहिंद ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

04.01.2022

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